सच्चाई की जीत और धूर्तता का अंत

एक नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो गहरे मित्र रहते थे। धर्मबुद्धि अपने नाम के अनुरूप अत्यंत ईमानदार और सज्जन था, जबकि पापबुद्धि स्वभाव से धूर्त और चालाक था। बचपन की मित्रता के कारण वे दोनों हमेशा साथ रहते थे। एक दिन पापबुद्धि के मन में धन कमाने का विचार आया और उसने धर्मबुद्धि को भी इसमें शामिल किया। धर्मबुद्धि ने उसकी बात मान ली और दोनों ने मिलकर एक व्यापार शुरू किया। धर्मबुद्धि की मेहनत और लगन से उनका व्यवसाय दिन-प्रतिदिन फलने-फूलने लगा।

व्यापार में आई सफलता से दोनों ने खूब धन कमाया, परंतु पापबुद्धि के मन में लालच घर कर गया। वह अकेले ही सारा धन हड़पना चाहता था। एक शाम पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र, हमने बहुत धन कमा लिया है। मुझे लगता है कि इसे किसी सुरक्षित स्थान पर छिपा देना चाहिए ताकि कोई चोर इसे चुरा न सके।” धर्मबुद्धि, जो सरल स्वभाव का था, तुरंत सहमत हो गया। दोनों ने मिलकर शहर के बाहर एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे खुदाई करके अपनी सारी कमाई छिपा दी।

कुछ दिन बाद, पापबुद्धि ने अपनी धूर्त योजना को अंजाम दिया। एक अंधेरी रात को, जब सभी सो रहे थे, वह चुपचाप बरगद के पेड़ के पास गया और सारा धन निकाल लिया। अगली सुबह, वह बीमारी का बहाना बनाते हुए धर्मबुद्धि के पास पहुँचा और उसे बताया कि कल रात किसी चोर ने उनका छिपाया हुआ सारा धन चुरा लिया है। धर्मबुद्धि को उसकी बात पर यकीन हो गया। जब वे दोनों धन वाली जगह पर पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि धन सचमुच गायब था। पापबुद्धि ने तुरंत धर्मबुद्धि पर चोरी का आरोप लगा दिया और उसे नगर के न्यायधीश के पास ले गया।

न्यायधीश ने दोनों की बात ध्यान से सुनी। धर्मबुद्धि अपनी निर्दोषता सिद्ध करने की पूरी कोशिश कर रहा था, जबकि पापबुद्धि उसे झूठा साबित करने पर तुला हुआ था। न्यायधीश बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने कहा, “हम इस मामले में उसी बरगद के पेड़ से पूछेंगे, जिसके नीचे धन छिपाया गया था। वही सच्चा साक्षी होगा।” अगले दिन, सभी नगरवासी और न्यायधीश सहित धर्मबुद्धि और पापबुद्धि उस पेड़ के पास पहुँचे। जब न्यायधीश ने पेड़ से प्रश्न पूछा, तो एक गहरी आवाज़ आई जिसने कहा कि उसने पापबुद्धि को रात में धन चुराते हुए देखा था।

वह आवाज़ सुनकर पापबुद्धि का चेहरा पीला पड़ गया और उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। दरअसल, न्यायधीश ने पेड़ के खोखले तने में एक आदमी को छिपा रखा था जिसने पेड़ की आवाज़ में सच बताया। पापबुद्धि को उसकी धोखाधड़ी के लिए सजा मिली और धर्मबुद्धि को उसका सारा धन वापस मिल गया। इस घटना ने पूरे नगर को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया: ईमानदारी और सच्चाई हमेशा विजयी होती है, जबकि बेईमानी और धोखे का अंत हमेशा बुरा होता है।

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