किसी घने जंगल में एक भयंकर शेर रहता था, जिसका नाम भयंकरराज था। वह अपनी ताक़त का बहुत घमंड करता था और रोज़ाना कई जानवरों को मार डालता था, जिससे जंगल के सभी प्राणी भयभीत रहते थे। शेर के आतंक से जंगल में शांति भंग हो गई थी और हर जानवर अपनी जान बचाने के लिए छिपा रहता था। इस डर भरे माहौल में, जानवरों का जीवन बहुत कठिन हो गया था, और वे हमेशा मौत के साये में जीते थे।
एक दिन, जंगल के सभी जानवरों ने एक सभा बुलाई। उन्होंने इस समस्या का समाधान खोजने का फैसला किया। बहुत विचार-विमर्श के बाद, उन्होंने शेर के पास जाकर उससे विनती करने का निर्णय लिया। वे बोले, “हे वनराज! हम सब आपसे प्रार्थना करते हैं। यदि आप हर दिन एक जानवर को भोजन के लिए स्वीकार करें, तो हम अपनी मर्ज़ी से एक जानवर भेज देंगे, जिससे आपको शिकार करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और जंगल में शांति भी बनी रहेगी।” शेर ने उनकी बात मान ली।
कुछ समय बाद, एक छोटे और चतुर खरगोश की बारी आई। खरगोश जानता था कि उसे कैसे शेर को मात देनी है। वह जानबूझकर शेर के पास देर से पहुँचा। शेर गुस्से से लाल था और गरज कर बोला, “तुम इतनी देर से क्यों आए हो? क्या तुम्हें मेरी ताक़त का अंदाज़ा नहीं?” खरगोश ने शांत स्वर में कहा, “वनराज, मुझे माफ़ करना। रास्ते में एक और शेर ने मुझे रोक लिया था। वह कह रहा था कि यह जंगल उसका है और वही यहाँ का राजा है।”
यह सुनकर भयंकरराज को बहुत क्रोध आया। उसने खरगोश से पूछा, “कहाँ है वह दूसरा शेर? मुझे अभी उसे दिखाओ।” खरगोश ने शेर को एक पुराने और गहरे कुएँ के पास ले जाकर कहा, “वह अहंकारी शेर इसी कुएँ में रहता है।” शेर ने कुएँ के अंदर झाँका। उसे कुएँ के पानी में अपनी ही परछाई दिखाई दी। उसने सोचा कि यही वह दूसरा शेर है और उसे ललकारने लगा।
गुस्से में अंधा होकर और अपनी परछाई को ही दूसरा शेर समझकर, भयंकरराज ने ज़ोरदार दहाड़ लगाई और उस परछाई से लड़ने के लिए कुएँ में कूद गया। जैसे ही वह कूदा, गहरे पानी में डूब गया और मर गया। इस तरह, चतुर खरगोश ने अपनी बुद्धि से पूरे जंगल को एक अहंकारी और क्रूर शेर के आतंक से मुक्त कराया। सभी जानवरों ने खरगोश की बुद्धिमत्ता की खूब प्रशंसा की और जंगल में फिर से शांति और खुशी लौट आई।