पत्नियों की ज़िद

किसी राज्य में एक पराक्रमी और प्रसिद्ध राजा था, जिसका नाम नंद था। उसकी वीरता दूर-दूर तक फैली थी, जिससे शत्रु भी भयभीत रहते थे। अपने इन्हीं गुणों के कारण उसने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया था। वह एक शक्तिशाली शासक के रूप में जाना जाता था।

राजा नंद का एक बुद्धिमान मंत्री था, जिसका नाम वररुचि था। वह शास्त्रों का गहरा ज्ञाता और एक महान पंडित था। उसकी बुद्धिमत्ता का सभी सम्मान करते थे, और राजा नंद भी उसकी सलाह को अत्यधिक महत्व देते थे। वररुचि को भविष्य देखने की शक्ति भी प्राप्त थी; वह कहीं भी होने वाली घटना को तुरंत जान लेता था।

एक बार की बात है, राजा नंद की रानी किसी बात पर उनसे रूठ गईं। राजा ने उन्हें मनाने के अनेक प्रयास किए, पर रानी का गुस्सा शांत नहीं हुआ। तब राजा नंद ने पूछा, “प्रिये, बताओ, तुम्हें मनाने के लिए मुझे क्या करना होगा? कैसे तुम मुझसे प्रसन्न होओगी?”

रानी ने अहंकार से भरकर कहा, “आप घोड़े का रूप धारण करें, मुझे अपनी पीठ पर बिठाएं और घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए इस कक्ष की परिक्रमा करें। ऐसा करने पर ही मैं आपसे प्रसन्न होऊंगी।” राजा नंद को विवश होकर यही करना पड़ा। उन्होंने रानी को अपनी पीठ पर बिठाया और घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए कक्ष के कई चक्कर लगाए, तब जाकर रानी का क्रोध शांत हुआ और वह मुस्कुराने लगीं।

उसी रात, वररुचि की पत्नी भी उनसे नाराज़ हो गईं। वररुचि ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया, पर वह किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं थीं। अंत में, वररुचि ने हार मानकर कहा, “प्रिये, तुम ही बताओ कि तुम्हारा गुस्सा कैसे दूर होगा? मुझे क्या करना चाहिए जिससे तुम मान जाओ?”

इस पर वररुचि की पत्नी ने एक विचित्र शर्त रखी। उन्होंने कहा, “तुम्हें अपना सिर मुंडवाना होगा और फिर मेरे पैरों पर गिरकर माफ़ी मांगनी होगी, तभी मैं शांत होऊंगी।” वररुचि एक महान विद्वान और नीतिज्ञ थे, लेकिन पत्नी की इस ज़िद के आगे उनकी सारी बुद्धिमत्ता धरी रह गई। उन्होंने तुरंत अपना सिर मुंडवाया और पत्नी के पैरों पर गिरकर हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।

उनकी पत्नी ने तब कहा, “ठीक है, अब मेरी नाराजगी दूर हो गई है।” अगले दिन, जब वररुचि राजदरबार में पहुँचे, तो राजा नंद ने उनके मुंडवाए हुए सिर को देखकर मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “आचार्य, ऐसा कौन सा विशेष पर्व था जिस पर आपने अपने बाल मुंडवा लिए?”

वररुचि ने अपने अंतर्ज्ञान से पिछली रात राजा नंद के महल में घटी घटना को भी देख लिया था। उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ महाराज, कल एक बड़ा ही विशेष पर्व था। मैंने उसी विशेष पर्व पर अपने बाल मुंडवाए, जिस पर राजाओं के राजा, अत्यंत वीर और बलशाली राजा नंद अपनी पत्नी को पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए कमरे का चक्कर लगा रहे थे।”

यह सुनकर राजा नंद को अपनी रात की घटना तुरंत याद आ गई और वे लज्जित हो गए। राजा नंद यह अच्छी तरह समझ गए थे कि पत्नियों की ज़िद के आगे बड़े से बड़े वीर की वीरता और बड़े से बड़े पंडित का ज्ञान भी व्यर्थ हो जाता है। इसलिए किसी को भी दूसरों की ऐसी परिस्थितियों का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए।

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