मेढकों के एक समूह में गंगदत्त नामक एक मेढक रहता था। वह अपनी ईमानदारी, ज्ञान और सीधे-सादे स्वभाव के लिए जाना जाता था। उसे झूठ, चालाकी और धोखे से सख्त नफरत थी। अपने इसी खरेपन के कारण वह अपने समुदाय में अलग-थलग पड़ गया था। दूसरे मेढक अक्सर उसकी उपेक्षा करते और मौका मिलते ही उसका उपहास उड़ाते थे।
इस निरंतर तिरस्कार से गंगदत्त का मन बहुत दुखी रहने लगा। वह भीतर ही भीतर कुढ़ता रहता, यह सोचकर कि उसने तो हमेशा इन लोगों का भला चाहा, उनकी मुसीबतों में मदद की, पर बदले में उसे सिर्फ़ अपमान ही मिला। उसके जीवन में अब निराशा और उदासी ही बाकी थी।
उसने अपनी यह पीड़ा अपनी पत्नी से साझा की। पत्नी भी उसकी बात सुनकर बहुत व्यथित हुई और बोली, “आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। अपने तो मुसीबत में काम आते हैं, इसीलिए लोग उनके बीच रहना पसंद करते हैं। पर जब अपने ही पराए बन जाएँ, तो भला उनके बीच रहने का क्या लाभ? इससे तो बेहतर है कि आप इस कुएँ को छोड़कर बाहर की दुनिया देखें। अच्छे लोग भी होते हैं, शायद आपको कोई ऐसा मित्र मिल जाए जिससे मिलकर हमें सच्चा सुख मिले।”
गंगदत्त ने संशय से कहा, “पर मुझे तो इस कुएँ के बाहर की दुनिया का कुछ भी ज्ञान नहीं है। तो भला मैं बाहर जाकर क्या करूँगा?” पत्नी ने उसे समझाते हुए प्रेरित किया और अंततः गंगदत्त अपनी किस्मत आज़माने के लिए कुएँ से बाहर जाने को तैयार हो गया।
कुछ समय बाद, एक किसान ने रहट चलाया और गंगदत्त उसके डोल में बैठकर कुएँ से बाहर आ गया। चकित होकर वह इधर-उधर देखने लगा और उछलता-कूदता आगे बढ़ा। तभी उसकी नज़र एक विशालकाय साँप पर पड़ी, जिसका नाम प्रियदर्शन था। गंगदत्त के मन में एक विचार आया कि यह साँप मेढकों का दुश्मन है। अगर इसे अपने साथ कुएँ में ले जाऊँ, तो यह मेरे उन अपमान करने वाले शत्रुओं को एक-एक कर खा जाएगा, जिससे मेरे दिल को शांति मिलेगी।
यह सोचकर गंगदत्त ने साँप के बिल के बाहर खड़े होकर आवाज दी, “हे सर्पराज, मैं आपको एक बहुत ही शुभ समाचार देना चाहता हूँ!” प्रियदर्शन, जो अब बूढ़ा हो चला था और भोजन तलाशने में कठिनाई महसूस करता था, तुरंत बाहर आया। गंगदत्त का आना उसके लिए एक वरदान समान था। वह सहर्ष तैयार हो गया और गंगदत्त उसे अपने साथ कुएँ में ले आया।
कुएँ में पहुँचकर गंगदत्त ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई। पत्नी यह सुनकर बहुत दुखी हुई और बोली, “हे भगवान, आपने यह क्या कर डाला? अपने ही कुल के लोगों का नाश करने के लिए आप एक भयंकर शत्रु को घर ले आए! अब इसे कौन रोकेगा? अपने सगे-संबंधी भले ही बुरे हों, पर वे कम से कम जानलेवा तो नहीं। आप तो साक्षात काल को ही सामने ले आए! मुझे समझ नहीं आता कि इतने बुद्धिमान होते हुए भी आपने ऐसी भूल कैसे कर दी?”
गंगदत्त ने उत्तर दिया, “मैंने जो अपमान और पीड़ा झेली है, वह मैं ही जानता हूँ। मेरी छाती प्रतिशोध की आग से धधक रही है। अब इस शक्तिशाली जीव से मेरी मित्रता हो गई है, तो सभी मुझसे डरेंगे और यह एक-एक करके सबका अंत कर देगा। मैं इस बदले के अलावा और कुछ नहीं सोच पा रहा हूँ।” उसकी पत्नी चुप हो गई, पर उसकी आँखों में गहरी उदासी और अविश्वास साफ झलक रहा था।
प्रियदर्शन साँप ने अब उसी कुएँ में अपना बिल बना लिया और गंगदत्त के कहने पर एक-एक करके सभी मेढकों को खाने लगा। धीरे-धीरे कुएँ में गंगदत्त के परिवार के सदस्यों को छोड़कर कोई और मेढक नहीं बचा। तब गंगदत्त ने साँप से कहा, “हे सर्पराज, तुम्हारे यहाँ आने का उद्देश्य पूरा हो चुका है। अब तुम अपने घर की ओर प्रस्थान करो।”
प्रियदर्शन ज़ोर से हँसा और बोला, “कैसा घर? जहाँ किसी को रहने की सभी सुख-सुविधाएँ और बढ़िया भोजन मिले, वही तो उसका घर होता है। मैं अब इस कुएँ को छोड़कर नहीं जाऊँगा। मुझे भूख लगी है और मैं किसी न किसी को तो खाऊँगा ही।” यह कहकर उसने गंगदत्त के एक बेटे को खा लिया।
गंगदत्त और उसकी पत्नी बहुत व्याकुल हो उठे, पर प्रियदर्शन बहुत शक्तिशाली था। गंगदत्त ने तो खुद ही इस भयंकर शत्रु को अपने घर में बसाया था, अब वह उसे क्या कहता? प्रियदर्शन ने एक-एक करके गंगदत्त के सभी बेटों और फिर उसकी पत्नी को भी खा लिया। अब केवल गंगदत्त ही बचा था।
प्रियदर्शन उसे भी खाना चाहता था, पर तभी गंगदत्त को एक तरकीब सूझी। उसने कहा, “देखो सर्पराज, पास ही एक बड़ा सरोवर है, जिसमें अनगिनत मेढक रहते हैं। अगर तुम मुझे इजाज़त दो, तो मैं उन सभी को यहाँ ले आऊँ, ताकि तुम उन्हें मज़े से खा सको।” प्रियदर्शन खुशी-खुशी मान गया। गंगदत्त तुरंत उस सरोवर में पहुँचा और अपने पिछले दुख भरे जीवन को भूलकर एक नई शुरुआत की। उसने वहाँ अपना नया परिवार बसाया और धीरे-धीरे अपने घावों को भरने लगा।
कुछ समय बाद, एक गोह वहाँ आई और गंगदत्त से बोली, “सुनो गंगदत्त, तुम्हारा मित्र प्रियदर्शन तुम्हें बड़ी आतुरता से याद कर रहा है। तुम्हारी याद में उसने अन्न-जल त्याग दिया है। उसने कहा है कि अगर और मेढक नहीं मिले, तो तुम ही उसके पास आ जाओगे। उसने कसम खाई है कि वह तुम्हें किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाएगा। इसलिए तुम एक बार जल्दी से जाकर उससे मिल लो।”
इस पर गंगदत्त ने दृढ़ता से कहा, “मैं एक बार बहुत बड़ा धोखा खा चुका हूँ, वही मेरे पूरे जीवन के लिए पर्याप्त है और उसकी पीड़ा हमेशा मुझे याद रहेगी। मैं फिर से वही गलती दोहराना नहीं चाहता। ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि मुझे सही समय पर बुद्धि आ गई और मैं उस कुएँ से बाहर आ गया। वरना आज मैं तुमसे बात करने के लिए जीवित ही नहीं होता।” गोह लज्जित होकर वापस लौट गई।