कौआ और उल्लू की दुश्मनी

पक्षियों ने महसूस किया कि उनके राजा गरुड़देव हमेशा भगवान विष्णु की सेवा में व्यस्त रहते हैं, इसलिए उन्हें एक ऐसे राजा की आवश्यकता है जो उनकी समस्याओं पर ध्यान दे सके और उनका ख्याल रखे। एक बगुले ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि जिस राजा से प्रजा को कोई लाभ न मिले, उसका होना न होना एक समान है। हंस ने भी उसकी बात से सहमति जताई।

अब सभी पक्षियों के सामने यह प्रश्न था कि आखिर किसे नया राजा बनाया जाए। सब मिलकर इस विषय पर सोचने लगे। बगुले ने अचानक उल्लू का नाम सुझाया, यह कहते हुए कि उल्लू बहुत बहादुर है और संकट के समय सबकी रक्षा कर सकता है। यह सुनकर सभी पक्षी चौंक गए, क्योंकि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उल्लू भी राजा बन सकता है। बाज ने भी बगुले की बात का समर्थन किया। चमगादड़, जो उल्लू की तरह निशाचर था, ने तो उसकी खूब प्रशंसा की और कहा, “इससे बेहतर राजा भला और कौन हो सकता है?”

हंसों ने सोचा कि यह तो ऐसा ही है जैसे कोई पहाड़ चढ़ने के बजाय खाई में गिर जाए। मोर, चकवा, कोयल और तोता जैसे पक्षी भी उदास थे, लेकिन उल्लू के विरोध से बचने के लिए चुप रहे। उन्हें डर था कि यदि उन्होंने विरोध किया, तो उल्लू का गुस्सा उन्हें भारी पड़ सकता है। आखिरकार, सभी ने उल्लू को राजा बनाने पर सहमति दे दी और उसके राज्याभिषेक की भव्य तैयारियां शुरू हो गईं। विभिन्न प्रकार के फल, फूल, औषधियाँ और एक सौ आठ पवित्र तीर्थों का जल एकत्र किया जाने लगा।

तैयारियां चल ही रही थीं कि तभी एक कौआ वहाँ से गुजरा। इतनी विशाल पक्षी सभा देखकर वह हैरान रह गया। कौए को इस आयोजन में बुलाया नहीं गया था क्योंकि उसके कड़वे बोल के कारण कोई उसे पसंद नहीं करता था। उसने पूछने पर पक्षियों ने उसे बताया कि गरुड़देव की व्यस्तता के कारण उन्होंने उल्लू को अपना नया राजा चुना है, ताकि वह उनकी अनुपस्थिति में सब काम संभाल सके।

यह सुनकर कौआ जोर से हँसा और बोला, “तुम सब यह क्या मूर्खता कर रहे हो? क्या राजा बनाने के लिए तुम्हें इस क्रूर और अहंकारी प्राणी के अलावा कोई और नहीं मिला? मोर, तोता, मैना, कोयल और चक्रवाक जैसे सुंदर पक्षियों के होते हुए तुम इस भद्दे और आलसी उल्लू को राजा क्यों बना रहे हो? ज़रा इसकी सूरत तो देखो, यह हमेशा गुस्से में रहता है और इसका मुँह टेढ़ा रहता है। जब यह क्रोधित होता है तो किसी की खैर नहीं। यह दिन में आलसियों की तरह सोता है और रात में अपराधियों की तरह बाहर निकलता है, जो भी इसे मिलता है उसे मार डालता है। ऐसे नीच और अपराधी को राजा बनाकर तुम्हें क्या मिलेगा?”

कौए की बातें सुनकर वहाँ सन्नाटा छा गया। कई पक्षी मन ही मन उसकी बातों से सहमत थे, क्योंकि वे भी यही सोच रहे थे। पर उल्लू के डर से वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। उनकी चुप्पी देखकर कौए ने आगे कहा, “क्या तुमने यह भी सोचा कि गरुड़देव को यह बात सुनकर कैसा लगेगा कि उनके होते हुए तुमने एक दूसरा राजा चुन लिया है? भले ही वे हर समय उपस्थित न हों, लेकिन उनका नाम और उनकी महिमा बहुत बड़ी है। बड़े लोगों के काम उनके नाम और प्रभाव से ही हो जाते हैं। उल्लू जैसे तुच्छ प्राणी को राजा बनाना तो सीधे-सीधे गरुड़देव का अपमान होगा। अगर वे इस बात पर क्रोधित होकर तुम्हें दंड देने आ गए, तो सोचो क्या होगा?”

यह सुनकर बगुला सबसे ज्यादा डर गया, क्योंकि उसी ने उल्लू को राजा बनाने का सुझाव दिया था। बाज भी डरकर धीरे से सभा से निकल गया, क्योंकि उसने भी बगुले की बात का समर्थन किया था। उन्हें देखकर एक-एक करके सभी पक्षी वहाँ से खिसक गए।

उल्लू अपने चापलूसों और कुछ सेवकों के साथ बैठा राजपाट के सपने देख रहा था। वे उसे स्नान कराकर अच्छे वस्त्र पहना रहे थे और मीठी-मीठी बातें कर रहे थे। लेकिन जब उल्लू ने देखा कि धीरे-धीरे पूरा पंडाल खाली हो गया है और सभी पक्षी वहाँ से जा चुके हैं, तो उसे बहुत हैरानी हुई। उसे कुछ समझ नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है। तभी कृकालिका ने उसे बताया कि कैसे एक कौए ने आकर उसके राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच खलल डाल दिया और सभी पक्षी डरकर अपने-अपने घरों को लौट गए।

यह सुनकर उल्लू गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने कौए से कहा, “अरे कौए, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो तुमने मेरे राज्याभिषेक में बाधा डाली? अब चाहे कुछ भी हो, मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगा। यह समझ लो कि अब तुम हमेशा के लिए मेरे दुश्मन हो गए हो और मैं तुम्हें कभी चैन से नहीं जीने दूंगा।”

कौआ यह सुनकर बहुत पछताया। वह सोचने लगा, “मुझे सभा में इतने कड़े और तीखे शब्द कहने की क्या आवश्यकता थी? मैंने खामखा अपने कठोर वचनों से उल्लू को अपना शत्रु बना लिया। भले ही मेरी बातों में सच्चाई थी, लेकिन कड़वा सच कहना भी कई बार उलटा पड़ जाता है। हाय, मैंने यह गलती क्यों की?” दुखी मन से कौआ चुपचाप वहाँ से उड़ गया। तभी से कौओं और उल्लुओं के बीच दुश्मनी चली आ रही है, और वह आज तक खत्म नहीं हुई है।

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