सियार की धूर्तता

एक घने जंगल में वज्रदंष्ट्र नामक एक बलवान शेर रहता था। उसकी धाक पूरे जंगल में थी, और सभी जीव-जंतु उसके नाम से भयभीत रहते थे। वज्रदंष्ट्र के दो करीबी सलाहकार थे, चतुरक सियार और क्रव्यमुख भेड़िया। ये दोनों हमेशा उसके साथ रहते थे, अपनी मीठी बातों से उसे प्रसन्न रखते थे और विपत्ति में उसकी सहायता भी करते थे।

एक दिन, जंगल से गुज़र रही एक गर्भवती ऊँटनी अपने झुंड से बिछड़ गई थी। तेज़ी से चलते हुए उसे वज्रदंष्ट्र ने शिकार बना लिया। जब शेर ने ऊँटनी को खाया, तो उसके पेट से एक छोटा सा ऊँट का बच्चा निकला। शेर को उस पर दया आ गई। उसने बच्चे को अपने पास रखा और कहा, “तुम छोटे और प्यारे हो। इस जंगल में निडर होकर रहो, कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाएगा।”

उस छोटे ऊँट के कान शंकु जैसे नुकीले थे, इसलिए शेर ने उसे “शंकुका” नाम दिया। जंगल के बाकी जानवर भी उसे शंकुकर्ण कहकर बुलाते थे। शेर की शंकुकर्ण के प्रति गहरी ममता थी, जिस कारण कोई भी उसे हानि पहुँचाने या मारने का साहस नहीं करता था। वह जंगल में सुरक्षित और खुश रहता था।

समय के साथ, वज्रदंष्ट्र एक विशाल और शक्तिशाली हाथी से भिड़ गया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ, कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। वे पूरी शक्ति से एक-दूसरे पर हमला कर रहे थे, और लड़ते-लड़ते गंभीर रूप से घायल हो गए। अंत में, वज्रदंष्ट्र ने अपने तीखे पंजों और दाँतों से हाथी को मार गिराया, लेकिन इस लड़ाई में वह स्वयं भी बुरी तरह जख्मी हो गया था।

युद्ध के बाद, शेर वज्रदंष्ट्र इतना कमज़ोर हो गया कि ठीक से चल भी नहीं पाता था, और शिकार करना उसके लिए असंभव हो गया। उसके सलाहकार, चतुरक और क्रव्यमुख, इस बात से चिंतित थे। एक दिन, अत्यधिक भूख से व्याकुल होकर वज्रदंष्ट्र ने चतुरक से कहा, “मित्र, भूख से मेरी जान निकली जा रही है। कृपया मेरे लिए ऐसा शिकार ढूंढो जिसे पकड़ने में मुझे अधिक परिश्रम न करना पड़े।”

चतुरक सियार की नज़र बहुत समय से शंकुकर्ण पर थी। वह उसके स्वादिष्ट मांस को खाने की इच्छा रखता था, लेकिन जानता था कि वज्रदंष्ट्र ने शंकुकर्ण को जीवनदान दिया है, इसलिए शेर उसका शिकार नहीं करेगा। यह सोचकर चतुरक एक योजना बनाने लगा।

तभी चतुरक को एक विचार आया। उसने सोचा, ‘यदि शंकुकर्ण स्वयं भूख से पीड़ित शेर के पास जाकर कहे कि आप मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लें, तो शेर को उसे खाने में कोई आपत्ति नहीं होगी।’ अब उसे शंकुकर्ण को इसके लिए राजी करना था।

लेकिन शंकुकर्ण भला शेर के सामने जाकर ऐसी बात क्यों कहेगा? चतुरक को लगा कि उसे शंकुकर्ण को मनाने के लिए कोई तरकीब सोचनी होगी।

चतुरक ने एक धूर्त योजना बनाई। वह शंकुकर्ण के पास गया और बोला, “शंकुकर्ण, हमारे स्वामी बहुत परेशान हैं, भूख से उनकी जान निकली जा रही है। हम सेवक होने के नाते उनका कष्ट दूर करें। तुम्हें शायद पता नहीं, हमारे राजा वज्रदंष्ट्र को संजीवनी विद्या आती है। मेरी सलाह है, तुम उनके पास जाकर कहो, ‘महाराज, मैं आपको भूखा नहीं देख सकता, मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लीजिए।’ शेर तुम्हें खा तो लेगा, पर अपनी संजीवनी विद्या से तुम्हें फिर से जीवित कर देगा। तुम नए जन्म के बाद और भी शक्तिशाली और विशाल हो जाओगे। इससे राजा की भूख शांत होगी और तुम्हें बेहतर जीवन मिलेगा।”

शंकुकर्ण को चतुरक की बात सच लगी। वह तुरंत वज्रदंष्ट्र के पास गया और नम्रता से बोला, “महाराज, आप बहुत भूखे हैं। एक सेवक का कर्तव्य है कि वह अपने स्वामी का कष्ट दूर करने के लिए प्राण भी दे दे। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप मुझे मारकर अपनी भूख शांत करें।”

यह सुनते ही वज्रदंष्ट्र ने क्षण भर में शंकुकर्ण पर हमला कर दिया और उसे मार डाला। फिर उसने चतुरक को शंकुकर्ण की निगरानी करने का आदेश दिया और खुद स्नान करने चला गया, ताकि लौटकर आराम से उसका मांस खा सके।

चतुरक सियार मरे हुए शंकुकर्ण के पास पहरा दे रहा था, और पास में ही क्रव्यमुख भेड़िया भी खड़ा था। मृत ऊँट को देखकर भेड़िये के मुँह में पानी आ गया। चतुरक ने उसे फुसलाते हुए कहा, “भाई, डर क्यों रहे हो? शेर के आने से पहले अगर तुम थोड़ा मांस खा लो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। वज्रदंष्ट्र को भी क्या पता चलेगा? हाँ, जब शेर आता दिखेगा, तो मैं तुम्हें इशारा कर दूँगा, और तुम फौरन हट जाना।”

यह सुनकर भेड़िये ने तुरंत शंकुकर्ण के शरीर में अपने दाँत गड़ा दिए। लेकिन जैसे ही वह खाने लगा, चालाक चतुरक सियार ज़ोर से चिल्लाया, “अरे, हट जाओ! स्वामी आ रहे हैं!”

क्रव्यमुख भेड़िया डरकर एक तरफ सहमकर खड़ा हो गया।

वज्रदंष्ट्र जब स्नान करके लौटा और शंकुकर्ण को देखा, तो तुरंत समझ गया कि किसी ने उसे जूठा कर दिया है। गुस्से में आकर उसने गरजते हुए पूछा, “मेरे शिकार को किसने जूठा किया?” यह सुनकर क्रव्यमुख भेड़िया घबरा गया। तभी चतुरक ने अवसर का लाभ उठाते हुए कहा, “अरे दुष्ट! अब क्यों सहमकर खड़ा है? तू ही तो कह रहा था कि हमारे राजा वज्रदंष्ट्र में अब शक्ति कहाँ बची है? वे शिकार भी नहीं कर सकते, तो मेरा क्या बिगाड़ लेंगे? अब बता, इतनी दूर डरा-सहमा क्यों खड़ा है?”

चतुरक की बातें सुनकर शेर को अत्यंत क्रोध आया। उसे नहीं पता था कि यह सब चतुरक की चाल है, और उसी ने भेड़िये को उकसाया था। उसने सोचा, ‘यह सब भेड़िये की गलती है।’ तत्काल वज्रदंष्ट्र ने क्रव्यमुख भेड़िये पर हमला किया और उसे मार गिराया।

लेकिन अब वज्रदंष्ट्र शंकुकर्ण का मांस कैसे खाता? एक राजा के लिए किसी द्वारा जूठा किए गए शिकार को खाना अपमान की बात थी। इसलिए वज्रदंष्ट्र ने चतुरक सियार से कहा, “अब इसे तुम ही खा लो।” और चुपचाप वहाँ से चला गया।

चतुरक सियार मन ही मन मुस्कुराया और बोला, “वाह! मेरी योजना सफल हो गई। मैंने पहले क्रव्यमुख भेड़िये से शेर के शिकार को जूठा करवाया ताकि शेर उसे न खाए। फिर उस भेड़िये को भी मरवा डाला ताकि वह शिकार में हिस्सा न माँगे। अब दोनों बाधाएं दूर हो गईं। मेरे कई दिनों के भोजन का प्रबंध हो गया है। मैं इस ऊँट को आराम से खाऊँगा और आनंद लूँगा।”

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