एक बहुत छोटे से पक्षी का एक बड़ा सपना था: वह दुनिया के सबसे ऊँचे पहाड़ की चोटी तक पहुँचना चाहता था। बाकी सभी पक्षी, बड़े और मजबूत, उसका उपहास करते थे। वे कहते थे, “तुम इतने छोटे हो, तुम्हारी उड़ान इतनी कमज़ोर है, यह नामुमकिन है!” लेकिन छोटे पक्षी ने उनकी निराशाजनक बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने हर सुबह सूरज निकलने से पहले उठकर अभ्यास करना शुरू किया, हर दिन अपनी उड़ने की सीमा को थोड़ा और बढ़ाने की कोशिश करता रहा।
उसकी यात्रा आसान नहीं थी। रास्ते में कई चुनौतियाँ आईं। कभी तेज़ हवाएँ उसे नीचे धकेल देतीं, कभी उसके छोटे पंख दर्द से भर जाते। कई बार उसे लगा कि उसे हार मान लेनी चाहिए, लेकिन अपने सपने की याद आते ही उसे फिर से ऊर्जा मिल जाती। उसने बिना रुके लगातार प्रयास किया। हर शाम, वह थोड़ी और ऊँचाई पर पहुँचकर आराम करता और अगली सुबह एक नए उत्साह के साथ अपनी उड़ान फिर से शुरू करता।
धीरे-धीरे, उस छोटे पक्षी की उड़ान में अद्भुत सुधार हुआ। उसके पंख अब पहले से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली हो चुके थे, और उसकी इच्छाशक्ति अटूट थी। एक दिन, अनवरत मेहनत और अटूट दृढ़ संकल्प के बल पर, वह उस विशाल पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँच गया। नीचे के सारे पक्षी उसे देखकर विस्मय में पड़ गए। उन्होंने उस नन्हे पक्षी से सीखा कि सफलता के लिए शारीरिक आकार नहीं, बल्कि मजबूत इरादे और निरंतर प्रयास की ज़रूरत होती है। छोटे पक्षी ने न केवल अपना सपना पूरा किया, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया कि वे कभी हार न मानें।