प्राचीन काल में एक राजा के विशाल महल में मंदविसर्पिणी नामक एक जूँ निवास करती थी। वह अत्यंत चतुरता से राजा के वस्त्रों में छिपी रहती और जब महाराज गहन निद्रा में होते, तब चुपचाप उनका रक्त पान करती थी। उसकी इस गोपनीय गतिविधि का राजा को कभी आभास भी नहीं हो पाता था, क्योंकि वह अपनी हर हरकत बहुत सावधानी से अंजाम देती थी।
एक दिवस मंदविसर्पिणी अपने स्थान पर बैठी थी, तभी अग्निमुख नामक एक खटमल वहाँ आ पहुँचा। दोनों में सहज ही वार्तालाप आरंभ हो गया। वे एक-दूसरे से अपने जीवन के अनुभव और विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे। अग्निमुख ने मंदविसर्पिणी से कहा, “तुम्हारे भाग्य तो अद्भुत हैं! तुम सीधे राजा के शयनकक्ष में रहती हो और अपनी इच्छानुसार उनका रक्तपान करती हो। इस पूरे राज्य में भला तुमसे अधिक सुखी प्राणी और कौन होगा?”
यह सुनकर जूँ मंदविसर्पिणी मुस्कुराई और बोली, “हाँ, यह बात तो सत्य है।” इस पर खटमल ने उत्सुकता से पूछा, “क्या ऐसा संभव नहीं कि मैं भी एक रात्रि तुम्हारे साथ इस कक्ष में ठहरूँ और राजा का रक्त चखूँ ताकि मुझे भी उसका स्वाद पता चल सके?” मंदविसर्पिणी को यह सुनकर क्रोध आ गया। उसने तुरंत चेतावनी दी, “अपनी जान प्यारी है तो यहाँ से तुरंत चले जाओ! अन्यथा यहाँ रुकने पर कोई तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेगा।”
खटमल अग्निमुख ने उसे शांत करते हुए कहा, “देखो, तुम क्रोधित मत हो। मैंने अपने जीवन में अनेकों मनुष्यों का रक्तपान किया है, परंतु आज तक किसी राजा का रक्त चखने का अवसर नहीं मिला। यदि तुम मुझे अनुमति दो, तो मैं केवल एक रात के लिए महाराज का रक्त पीना चाहता हूँ, ताकि मुझे भी इस अनुभव का पता चल सके।”
जूँ मंदविसर्पिणी ने उसे समझाया, “मित्र, मैं राजा के गहरी नींद में सो जाने पर ही अत्यंत सावधानी से और धीरे-धीरे रक्त पीती हूँ, ताकि उन्हें मेरी उपस्थिति का भान न हो। परंतु तुम तो स्वभाव से बड़े ही उतावले हो। यदि तुम रक्तपान करोगे, तो निश्चित रूप से राजा असहज महसूस करेंगे और फिर वे तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेंगे। व्यर्थ में अपनी जान जोखिम में क्यों डालना चाहते हो?”
खटमल अग्निमुख ने आश्वासन दिया, “नहीं-नहीं, जैसा तुम निर्देश दोगी, मैं ठीक वैसा ही व्यवहार करूँगा।” मंदविसर्पिणी ने शंका व्यक्त की, “पर मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं होता। तुम अवश्य कोई मूर्खता करोगे और तब हम दोनों संकट में पड़ जाएंगे।” अग्निमुख ने प्रतिवाद किया, “क्या तुमने मुझे इतना नादान समझा है? यह तुम्हारा वासस्थान है, मैं यहाँ तुम्हारे हर आदेश का पालन करूँगा।”
अंततः, जूँ मंदविसर्पिणी ने खटमल अग्निमुख को राजा के शयनकक्ष में रुकने की अनुमति दे दी। परंतु अग्निमुख वास्तव में बहुत ही जल्दबाज़ और अविवेकी था। जैसे ही राजा अपने शय्या पर लेटे, उसने तुरंत अपना डंक चुभो दिया। राजा को असहनीय पीड़ा और चुभन महसूस हुई। वे तत्काल उठ बैठे और अपने सेवकों को आदेश दिया, “देखो, कोई खटमल मुझे परेशान कर रहा है, उसे ढूंढो!”
राजा का आदेश मिलते ही सेवक तुरंत दौड़ पड़े और उन्होंने पूरे बिस्तर की गहन छानबीन की। खटमल अग्निमुख अपनी फुर्ती के कारण तेज़ी से भाग निकला और पकड़ में नहीं आया। परंतु बेचारी मंदविसर्पिणी जूँ में इतनी चपलता नहीं थी, और वह असहाय होकर पकड़ी गई तथा बेमौत मारी गई। अपने अंतिम क्षणों में उसने मन ही मन सोचा, “किसी बुरे स्वभाव वाले को शरण देना स्वयं अपनी मृत्यु को आमंत्रण देने जैसा है। यदि मैं उस खटमल की झूठी बातों में न आती, तो आज मेरी यह दुर्गति न होती।”