वन में भासुरक नाम का एक बलशाली शेर रहता था, जो अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था। उसकी वजह से पूरे जंगल में भय का साम्राज्य था। वह अपनी इच्छा से किसी भी जानवर का शिकार कर लेता, जिससे सभी जीव त्रस्त थे। उनकी रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया था। हर प्राणी यही सोचता था कि इस अत्याचारी से कैसे छुटकारा पाया जाए, जिससे जंगल में शांति और सुरक्षा लौट सके।
एक दिन, जंगल के सभी जानवरों ने मिलकर एक विशाल सभा बुलाई। गहरे विचार-विमर्श के बाद, उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने तय किया कि वे शेर भासुरक के पास जाएंगे और उससे निवेदन करेंगे कि प्रतिदिन एक जानवर को उसके भोजन के लिए भेजा जाएगा, बदले में वह बाकी जानवरों को अकेला छोड़ दे। इस प्रस्ताव पर सभी सहमत हुए, क्योंकि यह उनकी जान बचाने का एकमात्र उपाय लग रहा था।
सभी जानवर मिलकर भासुरक शेर के पास पहुँचे और अपनी प्रार्थना उसके सामने रखी। भासुरक कुछ देर सोचने के बाद सहमत हो गया, लेकिन उसने चेतावनी दी कि इस नियम का कड़ाई से पालन होना चाहिए। अब प्रतिदिन बारी-बारी से एक जानवर शेर का भोजन बनने जाता, जिससे बाकी जंगल को सुरक्षित रहने की उम्मीद मिली।
एक दिन, खरगोश की बारी आई। उसे आज भासुरक के पास जाना था। यह सोचकर ही उसके छोटे से हृदय में तूफान उठने लगा। “क्या करूँ? कैसे अपनी जान बचाऊँ?” वह गहरे सोच में डूब गया। उसे लगा कि यदि कोई तरकीब काम कर जाए और यह क्रूर शेर मर जाए, तो उसके साथ-साथ पूरे जंगल को भी मुक्ति मिल जाएगी।
धीरे-धीरे चलता हुआ खरगोश शेर की गुफा की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में उसे एक गहरा कुआँ दिखाई दिया। कुएँ के पास जाकर उसने झाँका तो पानी में अपनी ही परछाई देखी। अचानक उसके दिमाग में एक अद्भुत योजना कौंध गई। उसकी आँखों में चमक आ गई। अब वह तेजी से भासुरक शेर की गुफा की ओर भागा।
भासुरक, खरगोश को इतनी देर से आया देखकर क्रोध से दहाड़ उठा। उसने गुस्से में पूछा, “इतनी देर क्यों लगी? और तुम इतने छोटे से हो, तुम तो मेरा पेट भी नहीं भर पाओगे!” खरगोश ने शांत और विनम्र स्वर में उत्तर दिया, “महाराज, मैं समय पर चला था, लेकिन रास्ते में एक और शेर मिला। वह बहुत घमंडी था और मुझे खाना चाहता था।”
खरगोश ने आगे बताया, “मैंने उसे बहुत समझाया कि मैं आपके पास, जंगल के सबसे शक्तिशाली शेर के पास, भोजन बनने जा रहा हूँ। लेकिन वह मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था। वह बार-बार कह रहा था कि भासुरक कौन है मेरे आगे? वह तो मेरे नाम से ही काँपता है!” यह सुनकर भासुरक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
“क्या? किसने कहा ऐसा? चलो, मुझे उस दुष्ट शेर के पास ले चलो। मैं अभी उसे बताता हूँ कि जंगल का असली राजा कौन है!” भासुरक क्रोध में गरज उठा। खरगोश धीरे-धीरे उसे उसी कुएँ की ओर ले चला, रास्ते भर उस तथाकथित दूसरे शेर की ताकत की बातें करता रहा। भासुरक का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था।
कुएँ के पास पहुँचकर खरगोश ने कहा, “महाराज, यही है उस घमंडी शेर का दुर्ग। वह इसी किले के अंदर रहता है। वह कह रहा था कि आपके भासुरक शेर को तो मैं अभी पानी पिला दूँगा!” गुस्से से लाल भासुरक ने कुएँ में झाँका। उसे पानी में अपनी ही परछाई दिखाई दी, जिसे वह दूसरा शेर समझ बैठा।
उसने जोर से दहाड़ा, “कौन हो तुम?” कुएँ से उसकी ही दहाड़ की गूँज वापस आई, मानो दूसरा शेर भी उसे चुनौती दे रहा हो। भासुरक और भी आग-बबूला हो गया। उसने फिर पूछा, “मैं आऊँ तुम्हें मजा चखाने?” कुएँ से फिर वही गूँज सुनाई दी। अब भासुरक से और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने अपनी पूरी शक्ति से कुएँ में छलाँग लगा दी और गहरे पानी में डूब गया।
इस प्रकार, अपनी बुद्धिमत्ता और सूझबूझ से छोटे से खरगोश ने पूरे जंगल को अत्याचारी भासुरक शेर से मुक्ति दिला दी। वह खुशी से उछलता-कूदता भागा और यह शुभ समाचार जंगल के अन्य सभी जानवरों को सुनाया। सभी ने चैन की साँस ली और खरगोश की बुद्धिमत्ता की भरपूर प्रशंसा की, जिसने एक बड़ी समस्या का समाधान कर दिया था।