चतुर कौआ और साँप का अंत

एक घने जंगल में एक बड़ा पेड़ था। उसकी एक टहनी पर कौए और कौवी का घोंसला था, जहाँ वे दोनों बड़े आनंद से रहते थे। पर उनके इस खुशहाल जीवन पर हमेशा एक डर मंडराता रहता था। उसी पेड़ के तने की खोखल में एक विशाल काला साँप अपना घर बनाकर रहता था। कौवी हर पल उस साँप से भयभीत रहती थी, उसे अपनी और अपने भविष्य की चिंता सताती रहती थी।

कुछ समय बाद कौवी ने अपने घोंसले में अंडे दिए, तो उसकी चिंता और बढ़ गई। उसे यह डर सताने लगा कि कहीं खोखल में रहने वाला वह भयानक साँप उसके अंडों को खा न जाए। उसने अपनी इस परेशानी को कौए के सामने रखा। कौवी की बात सुनकर कौआ भी बहुत चिंतित हो गया। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि अपने होने वाले बच्चों को इस खतरनाक साँप से कैसे सुरक्षित रखा जाए।

कौआ और कौवी दोनों गहरे दुख में डूबे हुए थे। वे आपस में इस समस्या पर विचार-विमर्श कर रहे थे और एक-दूसरे को ढाँढस बंधा रहे थे, लेकिन उन्हें अपनी इस विकट समस्या का कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा था।

उनकी बातें पेड़ के नीचे बैठे एक चतुर सियार ने सुन लीं। कौए और कौवी का दुख देखकर उसे भी बुरा लगा। उसने कौए को अपने पास बुलाया और कहा, “मित्र, संकट के समय सिर्फ़ रोने या शिकायत करने से क्या लाभ? हमें कोई ऐसा उपाय सोचना चाहिए, जिससे तुम्हारी समस्या का समाधान हो और तुम्हारा दुश्मन भी हमेशा के लिए खत्म हो जाए।”

सियार की बात सुनकर कौआ और कौवी बोले, “मित्र, ऐसी कौन सी युक्ति है जो इस समस्या को हल कर सके? कृपया तुम ही हमें कोई राह दिखाओ।” इस पर सियार ने आत्मविश्वास से कहा, “यदि हम सच्चे मन से कोशिश करें, तो हर कठिनाई का हल मिल जाता है। तुम धैर्य रखो, मैं तुम्हें एक अचूक उपाय बताता हूँ।”

यह कहकर सियार ने कौए और कौवी को एक अत्यंत गोपनीय और प्रभावी तरकीब समझाई। योजना सुनकर दोनों के मायूस चेहरे खुशी से चमक उठे, मानो उन्हें अपनी सारी समस्याओं का समाधान मिल गया हो।

योजना के अनुसार, कौआ तुरंत उड़कर राजा के महल की ओर गया। उसने देखा कि महल के भव्य सरोवर में रानियाँ स्नान कर रही थीं। महारानी का बहुमूल्य सोने का हार सरोवर के किनारे रखा था। कौए ने बिना देर किए उस हार को अपनी चोंच में दबाया और तेज़ी से जंगल की ओर उड़ चला। महारानी और उनकी दासियों ने यह घटना देख ली थी और उनके शोर मचाने पर कई राजसेवक लाठियाँ लेकर कौए का पीछा करने दौड़े।

कौआ आगे-आगे उड़ रहा था और पीछे-पीछे क्रोधित राजसेवक अपने अस्त्र-शस्त्र लिए उसका पीछा कर रहे थे। कौआ सीधे उसी पेड़ की ओर गया, जहाँ उसका घोंसला था। उसने बड़ी चतुराई से महारानी का वह सोने का हार पेड़ की उस खोखल में गिरा दिया, जहाँ काला साँप निवास करता था। यह सब उसकी योजना का ही हिस्सा था।

राजसेवकों ने कौए को हार खोखल में डालते हुए देख लिया था। वे तुरंत उस पेड़ के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि खोखल में सोने का हार पड़ा है और उसके पास ही वह काला और विषैला साँप भी कुंडली मारे बैठा है। राजसेवकों ने बिना देर किए अपनी लाठियों से उस साँप को मार डाला और महारानी का कीमती हार सुरक्षित वापस ले गए।

राजसेवकों के जाने के बाद कौए ने अपनी कौवी से कहा, “अब तुम पूरी तरह निश्चिंत हो जाओ। हमारा सबसे बड़ा शत्रु मारा जा चुका है। अब हमारे अंडों और आने वाले बच्चों को कोई खतरा नहीं होगा।” कौवी ने राहत की साँस ली।

कौवी ने अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक सियार को धन्यवाद दिया। उसने कहा, “मित्र सियार, तुम्हारी बुद्धि और सहायता के कारण ही हम एक बड़े संकट से बच पाए हैं। इस उपकार के लिए हम तुम्हारे हृदय से आभारी हैं।”

सियार ने विनम्रता से कहा, “यह तो मेरा कर्तव्य था, मित्र! पर अब तुम हमेशा यह बात याद रखना कि किसी भी संकट में कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। क्योंकि जहाँ समस्याएँ होती हैं, वहाँ उनसे निकलने का कोई न कोई रास्ता भी अवश्य मौजूद होता है।” यह सुनकर कौआ और कौवी मुस्करा उठे और उन्होंने सियार की बात को हृदय से स्वीकार कर लिया।

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