घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष खड़ा था, जिस पर अनगिनत पक्षियों का बसेरा था। उन्हीं में लघुपतनक नामक एक कौआ भी रहता था, जो अपनी बुद्धिमत्ता और परोपकारी स्वभाव के लिए जाना जाता था। उसके हृदय में दूसरों के प्रति गहरा स्नेह और करुणा थी।
एक दिन, लघुपतनक ने देखा कि एक बहेलिया वन में आया। उसके हाथ में एक विशाल जाल था। उसने चालाकी से ज़मीन पर अनाज के दाने बिखेरे और उन पर अपना जाल बिछा दिया। फिर वह थोड़ी दूर छिपकर बैठ गया, इस इंतज़ार में कि पक्षी दाना चुगने आएं और जाल में फँस जाएँ, ताकि वह उन्हें आसानी से पकड़ सके।
बहेलिए की इस धूर्त चाल को दूर से देखते हुए, लघुपतनक ने बरगद पर बैठे अन्य पक्षियों को सतर्क किया। उसने ज़ोर से कहा, “सावधान रहो! इस दुष्ट बहेलिए के बिछाए जाल में मत फँसना। इसने दाने डालकर उस पर जाल बिछाया है और खुद दूर बैठा है, ताकि जो भी पक्षी इसमें फँसे, उसे आसानी से मार सके।”
लघुपतनक की चेतावनी सुनकर बरगद पर मौजूद सभी पक्षी तुरंत सतर्क हो गए।
कुछ ही देर बाद, कबूतरों का एक विशाल झुंड वहाँ उड़ता हुआ आया। नीचे दाने देखकर उनके मन में लालच आ गया और वे उन्हें तुरंत चुगना चाहते थे। लेकिन उनके समझदार मुखिया चित्रग्रीव ने उन्हें चेताया, “धरती पर ऐसे दाने किसने बिखेरे होंगे? मुझे इसमें कोई षड्यंत्र या खतरा महसूस हो रहा है। हमें सावधान रहना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि हमें अपने प्राण गँवाने पड़ें।”
भूखे होने के कारण कबूतरों से दानों का लालच छोड़ा नहीं गया। उन्होंने अपने मुखिया की समझदारी भरी बात को अनसुना कर दिया और जैसे ही दाने चुगने के लिए नीचे उतरे, वे तुरंत जाल में बुरी तरह फँस गए।
जाल में फँसते ही सभी कबूतर बेहद परेशान हो गए। उन्हें सामने अपनी मौत स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उन्हें पूरा यकीन था कि बहेलिया उन्हें जीवित नहीं छोड़ेगा।
कबूतरों की यह दयनीय स्थिति देखकर उनके मुखिया चित्रग्रीव को उन पर दया आ गई। उसने कहा, “मैंने तुम्हें बहुत समझाया था, पर लालच में पड़कर तुमने मेरी बात नहीं मानी। फिर भी, अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। यदि तुम सब मिलकर प्रयास करो, तो अपनी जान बचा सकते हो।”
कबूतरों ने उत्सुकता से पूछा, “भला यह कैसे संभव है?”
चित्रग्रीव ने उत्तर दिया, “तुम सभी मिलकर एक साथ, एक ही दिशा में पूरी शक्ति से उड़ान भरो। इससे यह जाल भी तुम्हारे साथ उड़ जाएगा, और बहेलिया तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचा पाएगा।”
चित्रग्रीव की सलाह मानकर कबूतरों ने एकजुट होकर यही किया। उन्होंने पूरी ताकत लगाई और जैसे ही उड़े, सचमुच जाल भी उनके साथ हवा में तैरने लगा। सभी एक साथ एक ही दिशा में उड़ने लगे। यह देखकर बहेलिया हैरान रह गया। जहाँ वह इतने सारे कबूतरों को फँसा देखकर खुश हो रहा था, वहीं उसे अपने जाल से भी हाथ धोना पड़ा।
बरगद के पेड़ पर बैठा लघुपतनक कौआ यह सब देख रहा था। उसे कबूतरों के मुखिया चित्रग्रीव की बुद्धिमत्ता बहुत पसंद आई। वह यह जानने के लिए उत्सुक था कि ये कबूतर अब कहाँ जाएँगे और आगे क्या करेंगे। इसलिए लघुपतनक कौआ भी उनके पीछे-पीछे उड़ने लगा।
आखिरकार, चित्रग्रीव के नेतृत्व में उड़ते हुए सभी कबूतर जंगल में एक ऐसी जगह पहुँचे, जहाँ उसका मित्र हिरण्यक चूहा रहता था। चित्रग्रीव की आवाज़ सुनकर हिरण्यक तुरंत बिल से बाहर आया और बोला, “अरे मित्र, तुमने मुझे किस लिए याद किया? सब कुछ ठीक तो है!”
इस पर चित्रग्रीव ने हिरण्यक को पूरी घटना सुनाई और उससे सभी कबूतरों के जाल काटने का अनुरोध किया।
हिरण्यक चूहे ने कहा, “मित्र, मैं अब वृद्ध हो चुका हूँ, मेरे दाँत भी कमज़ोर पड़ गए हैं और यह जाल बहुत मज़बूत है। मुझे संदेह है कि मैं सभी कबूतरों को छुड़ा पाऊँगा या नहीं। लेकिन तुम तो सभी कबूतरों के मुखिया हो और मेरे घनिष्ठ मित्र भी, तो पहले मैं तुम्हारे बंधन काट देता हूँ।” चित्रग्रीव ने तुरंत कहा, “नहीं, मित्र, ऐसा अन्याय मत करो। मैं इनका मुखिया हूँ, और मुखिया का कर्तव्य है कि पहले सबकी रक्षा करे, फिर अपनी। जब तक तुम सभी कबूतरों के बंधन नहीं काट देते, मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे बंधन काटो।”
यह सुनकर हिरण्यक ने प्रशंसा करते हुए कहा, “वाह मित्र! तुम्हारे जैसा महान चरित्र मैंने बहुत कम देखा है। मैं दिल से तुम्हारी सराहना करता हूँ। अब मैं सबसे पहले सभी कबूतरों के बंधन काटूंगा, और उसके बाद ही तुम्हारे बंधन मुक्त करूँगा।”
दूर बैठा लघुपतनक कौआ भी यह वार्तालाप सुन रहा था। चित्रग्रीव की निस्वार्थ भावना सुनकर उसके मुँह से अनायास ही निकला, “वाह-वाह चित्रग्रीव, तुमने कमाल कर दिया! मैंने तुम्हारे जैसा बड़े दिल वाला मुखिया कभी नहीं देखा। सचमुच, तुम्हारी महानता अतुलनीय है!”
अब हिरण्यक चूहा पूरे जोश और उत्साह के साथ अपने कार्य में लग गया। उसने एक-एक करके सभी कबूतरों के बंधन काटे और अंत में चित्रग्रीव को भी जाल से मुक्त कर दिया।
चित्रग्रीव और अन्य कबूतरों ने बार-बार हिरण्यक को धन्यवाद दिया और फिर खुले नीले आकाश में उड़ गए।
लघुपतनक कौआ यह सब देख रहा था। कबूतरों के मुखिया चित्रग्रीव की उदारता ने उसके मन पर गहरी छाप छोड़ी थी, और वह हिरण्यक चूहे की सच्ची मित्रता का भी बड़ा प्रशंसक बन गया था। दोनों पुराने मित्रों—चित्रग्रीव और हिरण्यक—की प्रेमपूर्ण बातचीत और एक-दूसरे पर उनके अटूट विश्वास ने लघुपतनक को बहुत प्रभावित किया।
कबूतरों के उड़ जाने के बाद, लघुपतनक कौए के मन में यह विचार आया, ‘काश! मैं भी हिरण्यक जैसे सच्चे और अच्छे मित्र से दोस्ती कर पाता!’
उसने तुरंत उसी पेड़ से आवाज़ लगाई जहाँ वह बैठा था, “भाई हिरण्यक चूहे, क्या तुम मेरी बात सुन रहे हो? मैं लघुपतनक कौआ हूँ। मैं तुम्हारी मित्रता और तुम्हारे श्रेष्ठ चरित्र से बहुत प्रभावित हुआ हूँ और तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ। क्या तुम मुझसे दोस्ती करना पसंद करोगे?”
हिरण्यक चूहे ने जवाब दिया, “अरे भाई लघुपतनक, तुम्हारे और मेरे स्वभाव में बहुत बड़ा अंतर है। कौए चूहों को खाते हैं। ऐसे में भला हमारी दोस्ती कैसे संभव हो सकती है?”
लघुपतनक कौआ बोला, “मैं तुम्हारी मित्रता और तुम्हारे गुणों से इतना प्रभावित हूँ कि तुमसे दोस्ती करने के लिए आतुर हूँ। तुम मुझे अच्छी तरह परख लो, फिर दोस्ती करना। पर दोस्ती ज़रूर करना।”
लघुपतनक की बातों में छिपी सच्चाई ने हिरण्यक के मन को छू लिया। वह सोचने लगा, ‘यह कौआ तो सचमुच बहुत भला प्रतीत होता है। मैं बेवजह ही इसे इतना बुरा मान रहा था।’
देखते ही देखते, लघुपतनक कौए और हिरण्यक चूहे के बीच गहरा प्रेम और विश्वास पनप गया। अब वे अक्सर साथ-साथ ही रहते थे।
एक दिन लघुपतनक ने हिरण्यक चूहे से कहा, “सुनो मित्र, लगता है अब हमारे बिछड़ने का समय आ गया है। मैं यहाँ से जाने का विचार कर रहा हूँ।”
“क्यों, क्या हुआ?” हिरण्यक चूहे ने उत्सुकता से पूछा। लघुपतनक कौए ने बताया, “यहाँ का राजा बहुत अन्यायी है, जिससे लोग दुखी हैं। कहते हैं कि ऐसे राज्य में नहीं रहना चाहिए जहाँ का राजा क्रूर हो। हमें यह स्थान छोड़ देना चाहिए। दक्षिण में एक घने वन में एक बड़ा तालाब है, जहाँ मेरा मित्र मंथरक कछुआ रहता है। मेरा मन है कि मैं वहीं जाकर रहूँ और उससे मिलूँ।” हिरण्यक ने कहा, “तो फिर मुझे यहाँ अकेले किसके सहारे छोड़ जाओगे? मुझे भी अपने साथ ले चलो।”
लघुपतनक ने सहमति दी, “चलो।”
आखिरकार, लघुपतनक कौए ने हिरण्यक चूहे को अपनी चोंच में उठाया और वे दोनों उस दुर्गम वन में पहुँचे, जहाँ लघुपतनक का मित्र मंथरक कछुआ रहता था। वे सीधे उस तालाब के किनारे पहुँचे।
पहले तो मंथरक कछुआ हिरण्यक चूहे को देखकर भयभीत हो गया और पानी में छिप गया। लेकिन जब लघुपतनक कौए ने अपनी पुरानी दोस्ती का परिचय दिया, तो मंथरक बाहर आया और बोला, “आओ मित्र, तुम्हारा स्वागत है!” इसके बाद तीनों मित्रों – लघुपतनक, हिरण्यक और मंथरक – के बीच मधुर वार्तालाप शुरू हो गया। उन्होंने एक-दूसरे को अपने मन की बातें बताईं।
हिरण्यक चूहे ने अपने पिछले जन्म की दुखद कहानी भी सुनाई, जिसे सुनकर मंथरक कछुआ बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा, “भाई, तुम बहुत दुखी हो। अपने आँसू पोंछ डालो, मैं तुम्हारा सच्चा मित्र हूँ। तुम एक मित्र के घर आए हो, तो फिर दुख किस बात का? यहाँ खुशी-खुशी रहो। मैं तुम्हारी हर संभव सहायता करूँगा।”
तीनों मित्र उस सरोवर के किनारे खुशी-खुशी रहने लगे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक हिरन घबराया हुआ उनकी ओर भागा चला आ रहा है। उसके पीछे हाथ में धनुष-बाण लिए एक बहेलिया था, जो उसे मार डालना चाहता था।
लघुपतनक कौए ने हिरन से कहा, “तुम इतने भयभीत क्यों हो? यहीं कहीं छिप जाओ, ताकि बहेलिया तुम्हें ढूँढ न पाए। हम तुम्हारे सच्चे मित्र हैं। तुम बिना किसी भय या चिंता के यहीं हमारे साथ रहो।”
लघुपतनक की बातें सुनकर चित्रांग हिरन को बहुत राहत मिली।
अब तीन मित्रों की इस मंडली में चित्रांग हिरन के रूप में चौथा मित्र भी शामिल हो गया था। चारों आपस में खूब बातें करते, एक-दूसरे से अपने दिल का हाल बाँटते और दुख में एक-दूसरे का सहारा बनते। वे अक्सर साथ-साथ घूमने भी निकलते थे, और उनकी गहरी दोस्ती देखकर जंगल के अन्य जानवर भी आश्चर्यचकित रह जाते थे।
कुछ दिनों बाद, वहाँ एक लालची सियार भटकता हुआ आया। चित्रांग हिरन को देखते ही उसके मुँह में पानी भर आया। उसने सोचा, ‘जैसे भी हो, मैं इस हिरन को ज़रूर अपना भोजन बनाऊँगा।’
लेकिन चित्रांग हिरन हर समय अपने तीनों मित्रों के साथ रहता था, तो सियार उसे कैसे फँसाता? तब सियार ने सोचा कि वह चित्रांग से सच्ची दोस्ती नहीं, बल्कि दोस्ती का दिखावा करेगा। अपनी कपटी दोस्ती से उसे जाल में फँसाकर, अंत में उसका मांस खाकर अपनी भूख मिटाएगा।
एक दिन लुब्धक सियार ने चित्रांग हिरन से कहा, “मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे अपना मित्र बनाना स्वीकार करोगे?”
चित्रांग हिरन लुब्धक की मीठी बातों में आ गया। उसने कहा, “मैं अपने अन्य मित्रों से पूछूंगा, और यदि उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, तो मैं तुम्हें अवश्य अपना मित्र बना लूँगा।”
आखिरकार, एक दिन चित्रांग हिरन ने अपने मित्रों से पूछा, “लुब्धक सियार इन दिनों मुझसे दोस्ती की बहुत बातें करता है। क्या हमें उसे अपना मित्र बना लेना चाहिए?”
इस पर लघुपतनक कौए, हिरण्यक चूहे और मंथरक कछुए ने उत्तर दिया, “हम लुब्धक सियार को नहीं जानते। उसकी नीयत कैसी है, हमें नहीं पता। कहीं उसे मित्र बनाने से तुम्हें अपने प्राणों का खतरा न मोल लेना पड़े?”
लेकिन चित्रांग हिरन के बार-बार आग्रह करने पर, उसके मित्रों ने अनिच्छा से लुब्धक सियार की दोस्ती को स्वीकार कर लिया।
अब लुब्धक सियार चित्रांग हिरन से बार-बार मिलने लगा। वे दोनों कभी-कभी साथ-साथ घूमने भी निकल जाते थे।
एक दिन लुब्धक सियार ने देखा कि बहेलियों ने एक खेत में जाल बिछाया हुआ है। वह तुरंत हिरन के पास दौड़ा और बोला, “जल्दी मेरे साथ चलो! मैं तुम्हें एक ऐसे खेत में ले चलता हूँ, जहाँ चारों ओर हरी-भरी घास है और ऐसा लगता है, मानो स्वर्ग का सुख धरती पर उतर आया हो।”
यह सुनकर चित्रांग हिरन बहुत उत्सुक हुआ और तुरंत सियार के साथ चल पड़ा। लेकिन जैसे ही उसने वहाँ नरम पत्तों को खाना चाहा, उसके पैर जाल में फँस गए। घबराहट से वह पसीने-पसीने हो गया। उसने तुरंत सियार को आवाज़ दी, “मित्र, जल्दी आओ! मुझे इस बंधन से मुक्त करो।”
सियार ने धूर्तता से कहा, “वैसे तो मैं अपने पैने दाँतों से यह जाल तुरंत काट सकता हूँ, पर क्या करूँ? आज मेरा व्रत है, इसलिए मैं आज इसे नहीं काट पाऊँगा। तुम्हें कल तक प्रतीक्षा करनी होगी। कल मैं तुम्हें निश्चित रूप से इस जाल से आज़ाद कर दूँगा।”
चित्रांग हिरन सियार की चालाकी को तुरंत समझ गया। उसने सोचा, “अब मेरा बचना मुश्किल है। यह दुष्ट सियार मुझे बचाएगा तो दूर, बल्कि मेरी मौत का इंतज़ार कर रहा है, ताकि मुझे खा सके।”
उधर, जब चित्रांग हिरन वापस नहीं लौटा, तो उसके तीनों मित्रों को बड़ी चिंता हुई। लघुपतनक कौआ उसकी तलाश में उड़ते हुए उसी स्थान पर पहुँच गया। उसने चित्रांग को जाल में फँसा देखा और सारी स्थिति समझ गया। उसने तुरंत हिरण्यक चूहे को बुलाया और उसे जाल काटकर चित्रांग को बचाने का निर्देश दिया, जबकि चित्रांग को पेट फुलाकर मृत होने का नाटक करने के लिए कहा ताकि बहेलिया उसे छोड़ दे।
बहेलिए ने सचमुच हिरन को मरा हुआ समझ लिया। लेकिन जाल कटते ही चित्रांग तेज़ी से भागा, तो बहेलिए ने उसे मारने के लिए डंडा फेंका। चित्रांग हिरन तो कूदकर दूर निकल गया, पर झाड़ी के पीछे छिपा हुआ वह धूर्त सियार, जो झूठी दोस्ती का नाटक कर रहा था, बहेलिए के फेंके हुए डंडे की चपेट में आ गया। उसी पल सियार का अंत हो गया।
चारों सच्चे मित्र फिर से उसी तालाब की ओर लौट गए। अब चित्रांग हिरन भी अच्छी तरह समझ चुका था कि एक सच्चे और एक कपटी मित्र में क्या अंतर होता है। इस घटना के बाद उसने कभी भी दोस्ती में धोखा नहीं खाया।