एक नगर में एक ज्ञानी ब्राह्मण निवास करता था। उसमें अनेक सद्गुण थे, किंतु किसी कारणवश उसे चोरी करने की एक बुरी लत लग गई। धीरे-धीरे यह आदत इतनी प्रबल हो गई कि उसके अन्य सभी अच्छे गुण इसके आगे फीके पड़ गए। अब उसका एकमात्र उद्देश्य यही रहता था कि किसी प्रकार चोरी करके खूब सारा धन एकत्र किया जाए और शेष जीवन सुखपूर्वक व्यतीत किया जाए।
एक बार चार ब्राह्मण एक यात्रा पर निकले, जिनके पास कुछ अमूल्य रत्न थे। घर वापस लौटते समय उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, क्योंकि उनके मार्ग में एक घना जंगल पड़ता था। उन्हें सदैव सतर्क रहना पड़ता था कि रात के समय कोई लुटेरा उनका धन न छीन ले।
इन चारों ब्राह्मणों ने अपने रत्नों को छिपाने का एक अनोखा तरीका सोचा। उन्होंने अपने शरीर में एक छोटा चीरा लगाकर उसके भीतर रत्न रखे और फिर उस स्थान को इस चतुराई से सील दिया कि कोई यह जान ही नहीं पाता था कि रत्न कहाँ छिपे हैं। शरीर के अंदर छिपे रत्नों को खोजना लगभग असंभव था, जिससे वे निश्चित होकर अपनी यात्रा कर रहे थे।
मार्ग में, उन्हें वह चोर ब्राह्मण भी मिला। जब यह ज्ञात हुआ कि उनका गंतव्य एक ही है, तो वे सब साथ चलने लगे। अंततः, उन चारों ब्राह्मणों ने उस चोर ब्राह्मण को यह रहस्य बता दिया कि उन्होंने शल्यक्रिया द्वारा अपने शरीर के भीतर अमूल्य रत्न छिपा रखे हैं।
यह सुनकर चोर ब्राह्मण ने मन-ही-मन दृढ़ संकल्प किया कि जैसे ही अवसर मिलेगा, वह उन्हें मारकर या बेहोश करके सभी रत्न हड़प लेगा। इस कुटिल योजना को मन में बुनता हुआ वह चुपचाप उनके साथ चलता रहा।
आगे चलकर उनके रास्ते में एक घना और भयानक जंगल आया, जहाँ किरातों की एक बस्ती थी। इन किरातों ने वहाँ के कौओं को प्रशिक्षित कर रखा था, जो उन्हें दूर से ही आने-जाने वालों की सारी जानकारी दे देते थे। इस प्रकार, किरातों को घर बैठे ही हर खबर मिल जाती थी।
जैसे ही वे पाँचों ब्राह्मण किरातों की बस्ती के करीब पहुँचे, कौओं ने जोर-जोर से चिल्लाकर किरातों को सूचित किया, “अभी-अभी पाँच ब्राह्मण आ रहे हैं जिनके पास अपार धन है। उन्हें जाने मत देना, उनका सारा धन लूट लो!”
यह सुनकर सभी ब्राह्मण भयभीत हो गए। उन्होंने सोचा, “अब यहाँ से बच निकलना असंभव है।”
कुछ ही देर में किरातों का एक दल आया और उन्होंने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। उन्होंने पाँचों ब्राह्मणों की गहन तलाशी ली, लेकिन उन्हें कहीं भी धन नहीं मिला। वे आश्चर्यचकित थे कि यदि इन ब्राह्मणों के पास धन नहीं है, तो कौए झूठ क्यों बोलेंगे और ऐसा संदेश क्यों दे रहे थे?
अंततः, किरातों के दल ने गरजते हुए कहा, “तुमने अपने शरीर में जहाँ कहीं भी धन छिपाया हो, चुपचाप निकालकर हमारे सामने रख दो। अन्यथा, हम तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके देखेंगे कि तुमने अपना धन कहाँ छिपाया है।”
यह सुनकर सभी ब्राह्मणों के चेहरे पर निराशा छा गई। चोर ब्राह्मण ने विचार किया, ‘अब तो मृत्यु निश्चित है। मेरे साथ के चार ब्राह्मणों के पास धन है, पर मेरे पास नहीं। जब ये किरात हम पाँचों के शरीर को काटकर तलाशी लेंगे, तो मेरे साथी भी मरेंगे और मैं भी। यदि मैं स्वयं को पहले प्रस्तुत करूँ, तो शेष चारों ब्राह्मणों की जान बच सकती है। मेरी जान तो जानी ही है; यदि वह चली जाए और मेरे सहयात्रियों का जीवन बच जाए, तो यह एक महान पुण्य का कार्य होगा। मुझे यही करना चाहिए।’
यह सोचकर, उस चोर ब्राह्मण ने आगे बढ़कर किरातों से कहा, “भाई, यदि तुम्हें तलाशी लेनी ही है, तो तुम सबको क्यों मारते हो? सबसे पहले तुम मुझे मारकर अच्छी तरह से जाँच कर लो। यदि तुम्हें मेरे पास कुछ न मिले, तो मेरे बाकी भले साथियों को छोड़ देना।”
किरातों के दल को यह बात उचित लगी। उन्होंने उस चोर ब्राह्मण के शरीर को काटकर उसके प्रत्येक अंग की तलाशी ली, लेकिन वहाँ कोई छिपा हुआ धन था ही नहीं। भला उन्हें कुछ मिलता भी कैसे? अंततः, उन किरातों ने शेष ब्राह्मणों को मुक्त कर दिया। वे चारों ब्राह्मण अपने साथी ब्राह्मण के त्याग को याद करते हुए और मन-ही-मन उसकी प्रशंसा करते हुए अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गए।
उन ब्राह्मणों को यह बात भला कैसे पता चलती कि उनका वह साथी वास्तव में एक चोर था, जो अवसर मिलते ही उन्हें लूटने की फिराक में था? किंतु जब उसने अपनी मृत्यु को निश्चित देखा, तो सोचा, “क्यों न स्वयं मरकर इन चारों सहयात्रियों की जान बचा लूँ?” उस क्षण उसके भीतर के सद्भाव और विद्वत्ता जागृत हो उठे, और उसने सचमुच अपना बलिदान देकर एक महान कार्य किया।
अंततः, चारों ब्राह्मण अपने उस साथी की अत्यधिक प्रशंसा करते हुए अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़े।