केकड़े की चतुराई

एक घने वन में, एक विशाल बरगद का पेड़ था, जहाँ बगुलों का एक झुंड अपना बसेरा बनाए हुए था। दुर्भाग्यवश, उसी पेड़ की एक खोखल में एक धूर्त सर्प भी रहता था। यह सर्प अक्सर बगुलों के अंडों को अपना आहार बना लेता था, जिससे बगुले अत्यंत चिंतित और दुखी रहते थे। उन्हें इस विकट समस्या का कोई समाधान नहीं सूझ रहा था कि कैसे अपने भविष्य और अंडों को इस दुष्ट शत्रु से सुरक्षित रखें। उनकी चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।

एक सुबह, अपनी पीड़ा से व्याकुल होकर, सारे बगुले एक सरोवर के किनारे एकत्र हुए और फूट-फूटकर रोने लगे। उनके अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, मानो उनका सारा दुख आँखों से बह रहा हो। सरोवर में रहने वाले एक केकड़े ने बगुलों की यह दयनीय दशा देखी। हालाँकि बगुलों और केकड़ों के बीच पुरानी दुश्मनी थी, फिर भी उसने सहानुभूतिपूर्वक उनसे पूछा, “हे मित्रो, तुम सब इतने दुखी क्यों हो? आखिर क्या कारण है जो तुम इस प्रकार आंसू बहा रहे हो?”

बगुलों ने अपनी सारी व्यथा केकड़े को सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे वह दुष्ट सर्प उनके अंडों को खाकर उनकी पीढ़ी को नष्ट कर रहा है और वे कितने लाचार महसूस कर रहे हैं। उन्होंने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, “हमें इस संकट से निकलने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा है। यदि आपको कोई समाधान सूझता हो, तो कृपया हमारी सहायता करें।”

केकड़े ने बगुलों के मुखिया की ओर देखकर कहा, “मामा, एक उपाय तो अवश्य है, जिससे आपकी यह समस्या हल हो सकती है। यदि आप सब थोड़ी सूझबूझ और चतुराई से काम लें, तो अवश्य सफल होंगे।” उसकी बातों में एक अजीब सी चमक थी, जिसे भोले बगुले समझ नहीं पाए।

बगुलों ने उत्सुकता से पूछा, “कृपया शीघ्र बताएं कि हम इस भयानक सर्प से अपनी रक्षा कैसे कर सकते हैं? क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे वह हमारे अंडों को हानि न पहुँचा पाए?” केकड़े ने धूर्तता से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “देखो, पास ही एक नेवले का बिल है, और यह तो सभी जानते हैं कि नेवला सर्प का जन्मजात शत्रु होता है। तुम बस इतना करो कि कहीं से मांस के कुछ टुकड़े लाओ और उन्हें नेवले के बिल से लेकर साँप के कोटर तक थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रख दो। नेवला उन टुकड़ों को खाता हुआ साँप के ठिकाने तक पहुँच जाएगा और उस दुष्ट सर्प का अंत कर देगा। बस, तुम्हारी सारी मुसीबतें समाप्त हो जाएँगी!”

केकड़े की यह सलाह सुनकर बगुले बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें लगा कि अब उनकी समस्या का समाधान हो गया है। उन्होंने कृतज्ञतापूर्वक केकड़े को धन्यवाद दिया, परंतु वे केकड़े की असली मंशा और उसकी छिपी हुई कपटपूर्ण चाल को बिल्कुल भी नहीं समझ पाए थे। वे अपनी तात्कालिक राहत में उसकी धूर्तता को पहचान न सके।

अगले दिन, बगुलों ने केकड़े के बताए अनुसार, नेवले के बिल से लेकर सर्प के कोटर तक मांस के टुकड़े रख दिए। नेवला उन टुकड़ों को खाता हुआ सर्प के ठिकाने तक आसानी से पहुँच गया और देखते ही देखते उस भयानक सर्प को मार डाला। बगुलों ने राहत की साँस ली, किंतु उनकी खुशी क्षणभंगुर थी। सर्प का काम तमाम करने के बाद, नेवले ने अपना ध्यान बगुलों की ओर मोड़ दिया और उन्हें भी अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया।

देखते ही देखते, अधिकांश बगुले नेवले के हाथों मारे गए। यह भयावह दृश्य देखकर, सरोवर के भीतर बैठा केकड़ा अपनी चाल पर बड़ी कुटिलता से हँस रहा था। उसने मन ही मन सोचा, “वाह! कितनी कुशलता से मैंने अपने पुराने दुश्मनों से बदला ले लिया। बगुलों ने मुझसे मदद माँगी थी, और मैंने उन्हें ऐसी सलाह दी, जिससे उनका ही अंत हो गया। वे यह भूल गए कि नेवला केवल साँप का ही नहीं, बल्कि उनका भी शत्रु है। अंततः, मेरी चतुराई ने अपना काम कर दिया और मैंने अपने शत्रुओं का विनाश कर दिया।”

जो कुछ बगुले किसी तरह बच पाए थे, वे अपने साथियों की दर्दनाक मृत्यु और अपनी जाति के इस भीषण विनाश से स्तब्ध थे। उन्हें अपनी मूर्खता पर गहरा पछतावा हो रहा था कि क्यों उन्होंने एक शत्रु की सलाह पर भरोसा किया। वे बार-बार सोचते रहे, “हमने केकड़े की बात क्यों मानी?” किंतु अब पछताने से क्या लाभ था? जो होना था, वह हो चुका था, और उन्हें अपनी भूल का बहुत बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा था।

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