स्नेहा एक छोटे से कस्बे में अपने माता-पिता के साथ रहती थी। उनका जीवन भले ही सादगी भरा था, लेकिन स्नेह और खुशियों से परिपूर्ण था। दुर्भाग्यवश, स्नेहा की माँ उसे कम उम्र में ही छोड़कर चली गईं। इस सदमे से उबरने से पहले ही, उसके पिता ने स्नेहा के बेहतर भविष्य के लिए दूसरी शादी कर ली। लेकिन उनकी यह उम्मीद जल्द ही बिखर गई। स्नेहा की सौतेली माँ ने आते ही उसके जीवन में तूफान खड़ा कर दिया। वह स्नेहा से हमेशा बुरा व्यवहार करती, उसे डांटती और घर के सारे काम करवाती थी। उसके पिता भी धीरे-धीरे सौतेली माँ के प्रभाव में आकर स्नेहा पर ध्यान देना कम कर चुके थे।
सौतेली माँ की क्रूरता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। उसने स्नेहा की पढ़ाई भी छुड़वा दी और उसे अपने छोटे सौतेले भाई की देखभाल करने को मजबूर कर दिया। घर के कामों का बोझ और अपमानजनक व्यवहार सहते-सहते स्नेहा का धैर्य जवाब देने लगा था। एक शाम, जब सौतेली माँ ने उसे बात-बात पर पीटा और भरपेट खाना भी नहीं दिया, तो स्नेहा ने हार मान ली। उसने चुपचाप घर छोड़ने का फैसला किया। बिना किसी पैसे या ठिकाने के, वह रात के अंधेरे में घर से निकल पड़ी, बस स्टैंड की ओर चल दी, इस उम्मीद में कि वह कहीं दूर जा सकेगी।
अंधेरा घना हो चुका था और सड़कें सुनसान थीं। अचानक कुछ आवारा लड़के उसके पीछे पड़ गए और उसका पीछा करने लगे। डरी-सहमी स्नेहा ने अपनी गति बढ़ाई, लेकिन लड़के भी तेज़ दौड़ने लगे। अपनी जान बचाने के लिए वह भागने लगी। तभी अचानक एक नौजवान सामने आया और उन लड़कों के सामने खड़ा हो गया। उसने हिम्मत दिखाते हुए उन लड़कों से भिड़ गया और स्नेहा को उनकी पकड़ से छुड़ाया। इस झड़प में उस नौजवान को काफी चोटें आईं। स्नेहा ने फौरन उसे सहारा दिया और उसकी मदद करने की कोशिश की।
उस भले इंसान ने स्नेहा से उसका हाल पूछा। उसने बताया कि उसका नाम इरफान है और वह पास के एक प्रतिष्ठित और धनी व्यापारी का बेटा है। उसने स्नेहा को अपनी व्यथा बताने के बाद अपने घर ले चलने की पेशकश की, ताकि वह सुरक्षित रह सके। स्नेहा ने उसकी ईमानदारी और उदारता पर भरोसा किया और उसके साथ चल दी। इरफान के घर पहुंचकर स्नेहा को पहली बार सुरक्षित महसूस हुआ। इरफान ने उसकी पूरी कहानी सुनी और उसे हर संभव मदद का आश्वासन दिया। उनकी दोस्ती धीरे-धीरे एक गहरे रिश्ते में बदल गई और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया।
कुछ ही महीनों में, इरफान और स्नेहा ने एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने का फैसला कर लिया। उन्होंने अपने परिवारों की सहमति से, या कुछ शुरुआती हिचकिचाहट के बाद, सादे ढंग से शादी कर ली। स्नेहा गर्भवती थी और इरफान के घर में खुशहाली का माहौल था। इस बीच, स्नेहा के पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी, हालांकि उसकी सौतेली माँ उसके जाने से खुश थी। आठ महीने बाद, एक दिन स्नेहा की सौतेली माँ ने उसे बाजार में देखा। स्नेहा को गर्भवती और विवाहित देखकर वह हैरान रह गई और उसे घर चलने को कहने लगी।
स्नेहा ने घर जाने से साफ इनकार कर दिया और बताया कि वह अब इरफान की पत्नी है। उसकी सौतेली माँ गुस्से में घर वापस लौटी और स्नेहा के पिता को सारी बात बताई, जिसमें उसने जोर देकर कहा कि स्नेहा ने एक मुस्लिम लड़के से शादी कर ली है। यह सुनकर पिता बहुत क्रोधित हुए और तुरंत पुलिस के साथ इरफान के घर पहुंच गए। वहाँ, इरफान और स्नेहा ने स्पष्ट किया कि वे दोनों बालिग हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की है। चूंकि दोनों ने कानूनी रूप से विवाह किया था, पुलिस को उन्हें छोड़ना पड़ा। स्नेहा और इरफान ने एक-दूसरे के प्यार और भरोसे के साथ अपनी नई जिंदगी शुरू की।