उनके रिश्ते की खबर जब परिवारों तक पहुँची, तो सब कुछ तनावपूर्ण हो गया। विशेष रूप से पूजा के माता-पिता पवन से उनकी जाति भिन्न होने के कारण इस संबंध के घोर विरोधी थे। सामाजिक मर्यादा और प्रतिष्ठा उनके लिए सर्वोपरि थी। बात इतनी बिगड़ गई कि आपसी बहस मारपीट में बदल गई और अंततः उन्हें पुलिस थाने की चौखट तक पहुँचना पड़ा। थानेदार ने दोनों को वयस्क मानते हुए स्पष्ट किया कि उन्हें अपनी मर्ज़ी से शादी करने का पूरा अधिकार है, और कोई भी उन्हें रोक नहीं सकता। यह सुनकर दोनों परिवार और अधिक चिंतित हो गए, उनकी पुरानी धारणाएँ गहरी जड़ें जमाए बैठी थीं।
थानेदार ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, दोनों परिवारों की वास्तविक चिंताओं को समझने का प्रयास किया। पवन के माता-पिता को लगता था कि इस शादी से उन्हें कोई सामाजिक लाभ नहीं मिलेगा, जबकि पूजा का परिवार अपनी जातिगत पहचान को लेकर चिंतित था। थानेदार ने बड़े धैर्य और सूझबूझ से दोनों पक्षों को समझाया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रेम में जाति या धन से कहीं अधिक ‘जिम्मेदारी’ मायने रखती है। उन्होंने पवन और पूजा को भी विवाह के बाद दोनों परिवारों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने और उन्हें निभाने की सलाह दी। इस विवेकपूर्ण समझाइश ने सभी के मन को शांत किया। अंततः, पवन और पूजा ने विवाह किया और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए, दोनों परिवारों को साथ लेकर एक सुखमय और सम्मानजनक जीवन जिया।