एक बार की बात है, एक उच्च अधिकारी अपने बेटे के साथ एक फाइव स्टार होटल से वापस आ रहे थे। रास्ते में उन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगाया था, जिस पर एक हवलदार ने उनकी गाड़ी रोक ली और चालान बनाने लगा। अधिकारी अपने पद का रौब झाड़ने लगे और हवलदार को धमकाया। मजबूर होकर हवलदार ने उन्हें जाने दिया। बेटा यह सब चुपचाप कार में बैठा देख रहा था। पिताजी ने गर्व से कहा, “वह मुझे नहीं जानता, मैं एक उच्च अधिकारी हूँ और वह एक मामूली हवलदार है।” बेटे के मन में सवाल उठा कि असली ऊँचा पद किसका होता है?
कुछ देर बाद, बेटे ने देखा कि कुछ गाड़ियाँ तेज़ रफ़्तार से गुज़र रही थीं और अचानक पिताजी को ज़ोर से ब्रेक लगाना पड़ा। बाहर देखने पर पता चला कि एक व्यक्ति को किसी गाड़ी ने टक्कर मारकर छोड़ दिया था और वह लहूलुहान सड़क पर पड़ा था। तभी वही हवलदार वहाँ पहुँचा, उसने तुरंत उस व्यक्ति को उठाया और किनारे लेटा दिया। उसने आसपास के लोगों से मदद मांगी, लेकिन कोई आगे नहीं आया। हवलदार ने उस अधिकारी से भी मदद की गुहार लगाई, पर अधिकारी ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें बहुत ज़रूरी काम से जाना है और वे वहाँ से निकल गए। बेटे को यह सब देखकर बहुत अजीब लगा कि बड़ा अधिकारी कौन है, उसके पिताजी या वह हवलदार जो अपनी ड्यूटी छोड़कर एक अनजान व्यक्ति की जान बचाने में लगा था?
अगले दिन, अख़बार में उस हवलदार की तस्वीर छपी, जिसने उस घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाया और उसकी जान बचाई थी। सरकार ने उसकी बहादुरी के लिए उसे इनाम देने की घोषणा की। यह सब देखकर और सुनकर बेटे के चेहरे पर मुस्कान आ गई क्योंकि उसे अपने सवाल का जवाब मिल चुका था। उसने समझ लिया कि बड़ा पद केवल नाम का नहीं होता, बल्कि सेवा और इंसानियत का प्रतीक होता है।
शिक्षा: सच्ची महानता पद में नहीं, बल्कि मानवीयता और सेवाभाव में निहित होती है। अपने पद का घमंड करने के बजाय, हमें हमेशा दूसरों की मदद करने का प्रयास करना चाहिए। असली ऊँचाई वह होती है जो दूसरों के काम आए।