पंकज स्वभाव से बेहद किताबी कीड़ा था। उसे बाहरी दुनिया या सामाजिक मेलजोल में कोई खास रुचि नहीं थी। उसका अपना एक छोटा सा संसार था, जो किताबों से भरा था। जब उसके पिताजी का तबादला इंदौर हुआ और वे एक पॉश मोहल्ले में फ्लैट लेकर रहने लगे, तो पंकज अपने परिवार के साथ नए घर में शिफ्ट हो गया। उसे अपने आस-पड़ोस या नए माहौल से कोई सरोकार नहीं था। वह घर में ही रहता और अपनी किताबों में खोया रहता।
कुछ दिनों बाद पंकज का छोटा भाई संजीव उससे मिलने आया। संजीव अपने भाई से बहुत प्यार करता था और उसकी इस अकेलेपन की आदत से चिंतित था। उसने पंकज से कहा, “भाई, तुम सारा दिन किताबों में क्यों खोए रहते हो? चलो, आज शाम को बाहर घूमने चलते हैं।” पंकज पहले तो झिझका, लेकिन संजीव के प्यार भरे आग्रह को टाल न सका। शाम को दोनों पास के पार्क में घूमने निकले। वहीं उनकी नज़र एक बेहद खूबसूरत लड़की पर पड़ी, जो स्कूटर से गुज़र रही थी। पंकज ने भी माना कि वह अच्छी दिखती है।
वे दोनों कुछ देर पार्क में टहले, कुछ खाया और फिर घर की ओर लौट चले। घर के करीब पहुँचते ही संजीव अचानक चौंककर बोला, “अरे, यह तो उसी लड़की का स्कूटर है!” पंकज भी हैरान रह गया, क्योंकि वह लड़की उनके सामने वाले घर के भीतर स्कूटर ले जा रही थी। यह देखकर संजीव मुस्कुराया और पंकज से कहा कि इतने दिनों से यहाँ रहते हुए भी तुम्हें अपनी पड़ोसी के बारे में कुछ पता नहीं चला। पंकज थोड़ा शर्मिंदा हुआ, लेकिन अब उसका मन उस लड़की से दोस्ती करने को कर रहा था।
अगली शाम संजीव ने एक तरकीब सोची। उसने पंकज से कहा कि वे क्रिकेट खेलेंगे। पंकज की बैटिंग थी और संजीव ने जानबूझकर बॉल को उस लड़की के घर की छत पर मार दिया। फिर संजीव ने पंकज से कहा कि वह बॉल लेने जाए, लेकिन पंकज हिचकिचा रहा था। तब संजीव खुद गया और आवाज़ लगाई। लड़की की मम्मी बाहर आईं और उन्होंने अपनी बेटी, जिसका नाम अन्नी था, को बॉल लाने छत पर भेजा। पहली बार पंकज और अन्नी की आँखें मिलीं। पंकज ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा और अन्नी ने सिर हिलाकर जवाब दिया।
अब पंकज का मन बार-बार अन्नी को देखने को करता। वह कोशिश करता कि बॉल फिर से अन्नी की छत पर जाए, लेकिन उससे ठीक से शॉट नहीं लग पा रहा था। संजीव ने यह देखा और एक बार फिर बॉल को अन्नी की छत पर फेंक दिया। अन्नी फिर से मुस्कुराते हुए बॉल नीचे लाई और पंकज को दे दी। कुछ देर बाद, दोनों भाई टहलने निकले और देखा कि अन्नी एक खाने के स्टॉल पर थी। संजीव तुरंत आगे बढ़कर अन्नी के खाने का बिल चुकाने लगा। अन्नी ने मना किया, पर संजीव ने कहा कि यह बॉल लौटाने का शुक्रिया है।
इस घटना के बाद पंकज और अन्नी में बातचीत शुरू हो गई। पंकज को यह जानकर खुशी हुई कि अन्नी भी उसकी तरह पढ़ाई और करियर को लेकर गंभीर थी। दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। संजीव के घर लौटने के बाद भी पंकज और अन्नी एक-दूसरे से मिलते रहे और फोन पर भी बातें करते रहे। पंकज को लगा कि उसे अपनी हमसफ़र मिल गई है, लेकिन कुछ समय बाद अन्नी पटना छोड़कर पुणे चली गई और अचानक ही पंकज से बात करना बंद कर दिया।
जब संजीव दोबारा आया और उसने अन्नी के बारे में पूछा, तो पंकज उदास मन से बोला कि अन्नी बहुत महत्वाकांक्षी थी। पंकज ने कहा, “इतनी अधिक महत्वाकांक्षा प्रेम में सही नहीं है, जहाँ इंसान दिल से जुड़ा होता है दिमाग से नहीं।” संजीव ने भी इस बात से सहमति जताई। इस तरह, अति महत्वाकांक्षा के कारण पंकज और अन्नी की प्रेम कहानी अधूरी रह गई और वे हमेशा के लिए अलग हो गए।