पहली पहेली

दिल्ली में रहने वाले केशव पर कम उम्र में ही परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई थी। पिता के आकस्मिक निधन के बाद उन्होंने व्यवसाय की बागडोर संभाली। पूरी लगन और मेहनत से केशव ने अपने पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्ति को दोगुना और फिर चौगुना कर दिया। पढ़ाई पूरी न कर पाने के बावजूद, उन्होंने व्यवसाय के सभी गुण सीख लिए थे। हालांकि, इस दौड़ में वे खुद के लिए जीना भूल गए थे। उनका जीवन केवल काम और जिम्मेदारियों के इर्द-गिर्द घूमता रहा।

जब व्यापार और संपत्ति खूब बढ़ गई, तो उनकी माँ ने उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने की सलाह दी। माँ ने कहा, “मुझे तुम पर गर्व है, बेटा, तुमने घर की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई, पर अब अपनी ज़िंदगी भी जियो।” माँ की बात सुनकर केशव ने सोचा कि वे सही कह रही हैं। उन्होंने कभी अपने बारे में सोचा ही नहीं था। इस विचार के साथ, वे कुछ दिनों के लिए मनाली घूमने चले गए। वहाँ उन्होंने पहाड़ पर एक छोटा सा आउट हाउस खरीदा और वहीं रहने लगे। दिल्ली के शोर-शराबे से दूर, उन्हें यहाँ असीम शांति मिली।

रोज़ सुबह उठकर वे पहाड़ों में घूमने निकल जाते। एक दिन जंगल में घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गई। शाम ढलने लगी और अंधेरा छाने लगा। तभी उनकी नज़र एक लड़की पर पड़ी जो जंगल से बाहर निकल रही थी। केशव ने उससे पूछा, “तुम इस समय जंगल में क्या कर रही हो? तुम्हें डर नहीं लगता?” लड़की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “डर क्यों लगेगा? यह जंगल ही तो मेरा घर है।” उसकी इस बात ने केशव को आश्चर्यचकित कर दिया।

केशव ने उससे अपने आउट हाउस का रास्ता पूछा, और लड़की उसे साथ चलने को कहने लगी। रास्ते भर वे बातें करते रहे। लड़की ने अपना नाम मीरा बताया, लेकिन अपने बारे में और कुछ नहीं कहा। केशव ने उसे अपने परिवार और व्यवसाय के बारे में सब बताया, पर मीरा बस चुपचाप सुनती रही। उसकी सादगी और रहस्यमयी चुप्पी केशव को बहुत आकर्षित कर रही थी। जब उनका आउट हाउस आया, तो मीरा ने कहा, “यह आ गया तुम्हारा घर, मुझे अब जाना होगा,” और वह पल भर में ओझल हो गई।

रात भर केशव मीरा के बारे में सोचता रहा। वह कौन थी? क्यों जंगल को अपना घर कहती थी? इतनी रात को वह जंगल में क्या कर रही थी? इन सवालों ने उसे बेचैन कर दिया। उसने पहले कभी किसी लड़की के बारे में इतना नहीं सोचा था। अगली सुबह उसने घर में काम करने वाली बाई और आस-पास के लोगों से मीरा के बारे में पूछा, लेकिन कोई उसे नहीं जानता था। उसे पता चला कि जंगल में कोई नहीं रहता। अब केशव को लगने लगा कि क्या यह सब उसका वहम था या कोई सपना? पर उसे याद था कि मीरा ही उसे आउट हाउस तक छोड़कर गई थी।

केशव को मीरा से मिलने की तीव्र बेचैनी होने लगी। यह केवल जिज्ञासा नहीं थी, बल्कि एक अनजानी सी तड़प थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मीरा से उसका कोई रिश्ता न होते हुए भी वह उससे मिलने को इतना बेताब क्यों है। क्या वह उस रहस्यमयी लड़की से प्यार करने लगा था? उसने कई रातें जंगल में बिताईं, मीरा का इंतज़ार किया, आस-पास के गाँवों में भी खोजा, लेकिन मीरा नहीं मिली। अंततः, वह वापस दिल्ली लौट आया, लेकिन मीरा केशव के लिए एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गई, जिसने उसके दिल में प्रेम की एक नई अनुभूति जगा दी थी।

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