भीषण गर्मी ने जंगल का बुरा हाल कर रखा था। चारों तरफ पानी के लिए हाहाकार मचा था, और प्यासे पशु-पक्षी जल की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। ऐसे में, एक दिन भालू जंगल में एक सुरक्षित और गहरी जगह देखकर अपने पंजों से एक बड़ा गड्ढा खोदने लगा। काम करते हुए वह खुशी से गुनगुना रहा था, “आओ बरसो मेघा प्यारे, भूमि को शीतल कर दो। खेत खलिहान पड़े हैं सूखे, धरती को तुम तर दो। हाहाकार मचा पानी का, आकर सबको तर दो।”
जंगल के राजा, शेर सिंह अपनी गश्त पर थे। उन्होंने भालू को गड्ढा खोदते देखा और उसके पास आकर बोले, “अरे भालू भाई, यह तुम क्या कर रहे हो? ऐसे गाते-गाते जंगल की सुन्दरता क्यों बिगाड़ रहे हो?” भालू मुस्कुराया और जवाब दिया, “नहीं महाराज, मैं जंगल की शोभा नहीं बिगाड़ रहा और न ही किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए यह गड्ढा खोद रहा हूँ। आप देखिए ना, कितनी भयंकर गर्मी पड़ रही है। सारे पशु-पक्षी पानी के लिए परेशान हैं।”
भालू ने आगे कहा, “बरसात का मौसम आने वाला है, इसलिए मैं यह गड्ढा पानी जमा करने के लिए खोद रहा हूँ। जब बारिश होगी, तो इसमें पानी भर जाएगा और हम सभी को पर्याप्त जल मिल पाएगा।” शेर सिंह ने आश्चर्य से पूछा, “तुम्हें कैसे पता चला कि बारिश आने वाली है, भालू भाई?” भालू ने समझाया, “महाराज, चींटियाँ अपने घर बदल रही हैं, आकाश में सारस झुंड बनाकर उड़ रहे हैं, मोर नाच रहे हैं और मेंढक भी टर्र-टर्र की आवाज़ कर रहे हैं। ये सभी बारिश के आने के संकेत हैं। मैं मेंढकों के पास भी गया था, उन्होंने ही मुझे इस अच्छी खबर की सूचना दी है।”
शेर सिंह यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “वाह भालू भाई, तुम तो बहुत अच्छा काम कर रहे हो! पर अकेले क्यों? तुम बिज्जू को बुला लेते!” भालू हँसा और बोला, “अरे महाराज, बिज्जू को फुर्सत कहाँ? वह तो अपनी दुनिया में ही मस्त रहता है।” राजा शेर सिंह ने भालू की पीठ थपथपाई और खुशी-खुशी वहाँ से चले गए।
धीरे-धीरे जंगल के बाकी जानवरों और पक्षियों को भी पता चला कि भालू एक बहुत नेक काम कर रहा है। कुछ जानवर उसकी मदद के लिए आगे आए और मिलकर उसके साथ गड्ढा खोदने में हाथ बँटाया। उन्होंने गड्ढे की दीवारों को पक्का किया, उसके तल में रेत बिछाई और फिर उसे एक पतले कपड़े से ढक दिया ताकि पानी साफ रहे।
कुछ दिनों बाद, घनघोर बारिश शुरू हो गई और कई दिनों तक लगातार बरसती रही। अच्छी बारिश से चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली नज़र आ रही थी। बरसाती घास पर ढेर सारे छोटे-छोटे जीव दिखाई दे रहे थे। हाथियों और जिराफों के बच्चे मस्ती में झूम रहे थे, और सूअर के बच्चे भी उछल-कूद मचा रहे थे। जुगनू रात में टिमटिमाते हुए चमकने लगे थे। यह नज़ारा किसी स्वर्ग से कम नहीं था; सभी पशु-पक्षी खुशी से इधर-उधर घूम रहे थे।
मेंढकों की दुनिया में तो खूब शोर मचा था। लेकिन, एक गोरिल्ला डरकर इधर-उधर भाग रहा था। उसे देखकर खरगोश हँसने लगा और बोला, “अरे गोरिल्ला भाई, क्या हुआ तुम्हें? क्यों भाग रहे हो? देखो कितना सुहाना मौसम है, आओ हम सब मिलकर नाचें, झूमें और गाएँ।” गोरिल्ला ने कहा, “नहीं-नहीं, मुझे बारिश बिल्कुल पसंद नहीं।” खरगोश ने समझाया, “अरे, भीगी धरती से कितनी सोंधी खुशबू आ रही है! देखो, काले बादल कैसे उमड़-घुमड़ रहे हैं!” दूर से ही यह सब देखकर शेर सिंह मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने सोचा कि भालू ने सचमुच बहुत अच्छा काम किया है।
बरसात ने चारों ओर रौनक ला दी थी, और जंगल में हर तरफ खुशहाली छाई हुई थी। जानवर के बच्चे आज के ‘रेनी डे’ पर भालू चाचा के रेस्टोरेंट में जाकर पिज्जा खाना चाहते थे। शेर सिंह ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, “जाओ बच्चों, आज की दावत मेरी तरफ से! लेकिन मैं ‘फास्ट फूड’ के सख्त खिलाफ हूँ, इसलिए आज खा लो, इसके बाद कभी नहीं!” बच्चे खुशी से झूम उठे और सब मिलकर गाने लगे: “बारिश आई छम-छम, लेकर छतरी निकले हम। मिलकर मौज मनाएँगे, भालू चाचा के रेस्टोरेंट में जाकर पिज्जा खाएँगे।”