अनजान रिश्तों की रात: एक चाचा और उसकी भतीजी की गुप्त मुलाकात

होटल के कमरे में सोफे पर बैठा, मैं अपने विचारों में खोया हुआ था। श्रेया के बाथरूम से लौटने का इंतजार कर रहा था। कमरे की हवा में अभी भी पिछली घटनाओं की गर्माहट तैर रही थी, और मेरे मन में उसके शरीर की यादें ताजा थीं। बाहर की रात शांत थी, पर कमरे के अंदर एक अलग ही दुनिया बसी हुई थी। मैंने अपनी सांसों को स्थिर करने की कोशिश की, पर दिल की धड़कनें अभी भी तेज थीं। शरीर के हर रोम में एक अजीब सी ऊर्जा दौड़ रही थी, जैसे कोई बिजली का करंट शरीर के तारों में भटक रहा हो। मैंने आसपास देखा – खाली शराब के गिलास, बिखरे हुए कपड़े, और वह बिस्तर जहां कुछ देर पहले तक इतिहास लिखा जा चुका था।

थोड़ी देर बाद श्रेया वापस आई। उसने एक पतले लाल रंग के थोंग पहन रखा था, जो उसके निचले हिस्से को ढकने का नाकाम प्रयास कर रहा था। कपड़ा इतना पतला था कि उसके शरीर के उभार साफ दिखाई दे रहे थे। पीछे की ओर एक महीन डोरी उसके नितंबों के बीच में धंसी हुई थी, जैसे कोई नदी दो पहाड़ों के बीच से बह रही हो। उसके स्तन अभी भी नंगे थे, और उसके निपल्स ऊपर की ओर उठे हुए थे, जैसे किसी ने उन्हें जागृत कर दिया हो। उन पर हल्के गुलाबी रंग की छाया थी, और वे मोमबत्ती की लौ की तरह कांप रहे थे। श्रेया के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी – आधी शर्म, आधी चुनौती।

वह मेरे पास आई और अपना एक पैर मेरी गोद में रख दिया। उसके पैर की उंगलियों ने अनायास ही मेरे उभार को छू लिया। उसकी आंखों में एक चमक थी, जैसे कोई बच्चा नया खिलौना पाकर खुश हो। “चाचू!” उसने कहा, आवाज में एक मधुर कंपन के साथ। “आपके इस डंडे ने तो मेरे अंदर तक उल्टी कर दी थी! मुझे उसे अंदर पानी मार-मार कर साफ करना पड़ा!” उसके शब्दों में एक अजीब सी मासूमियत थी, जो उसकी बातों की गंभीरता के विपरीत खड़ी हो रही थी। मैंने उसकी ओर देखा – उसके होंठ गुलाबी थे, आंखें चमक रही थीं, और चेहरे पर एक लालिमा थी जो शराब और उत्तेजना दोनों का मिश्रण थी।

मैंने अपना हाथ उसके नितंबों के पीछे रखा और उसे अपने करीब खींच लिया। उसकी त्वचा गर्म और मुलायम थी, जैसे रेशम के कपड़े को धूप में सेंक दिया गया हो। मैंने अपनी जीभ निकाली और धीरे से उसके योनि के होंठों पर फिरानी शुरू की – ऊपर से नीचे, फिर नीचे से ऊपर। उसकी त्वचा में नमकीन स्वाद था, शायद पसीने और शारीरिक तरल पदार्थों का मिश्रण। श्रेया ने मेरे बाल पकड़ लिए और एक सिसकी भरी आवाज निकाली। “उफ्फ चाचू! बस भी करो ना अब!” पर उसकी आवाज में विरोध नहीं, बल्कि आगे बढ़ने का आग्रह था। उसके हाथ मेरे सिर पर थे, उंगलियां मेरे बालों में फंसी हुईं।

मैंने उसे खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया। उसका वजन मेरी जांघों पर पड़ा, और मेरा उभार सीधा उसके नितंबों की दरार में से फिसलता हुआ उसके योनि के होंठों के बीच फंस गया। उसकी गर्माहट मेरे शरीर में आग लगा रही थी। मैंने उसके स्तनों को मसलना शुरू किया – वे नरम थे, लचीले थे, जैसे गर्म मोम के बने हों। मैंने उसकी गर्दन पर चुंबन लगाया, और उसकी त्वचा पर अपने होंठों का निशान छोड़ दिया। “बस कैसे करूं मेरी जान?” मैंने फुसफुसाया। “जब तेरे जैसी मस्त लड़की पास में हो, तो किसी का भी लंड पूरी रात बैठेगा नहीं!” मेरे शब्द कमरे की हवा में लटक गए, जैसे कोई गुप्त वादा।

श्रेया मचलने लगी, जैसे कोई मछली जाल में फंसकर तड़प रही हो। “प्लीज छोड़ो भी ना चाचू! मैं पेग बनाकर लाती हूं!” उसकी आवाज में एक बचकाना लहजा था। मैंने वापिस उसकी गर्दन पर जीभ फिराई। उसकी नसें धड़क रही थीं, और मुझे उसके दिल की धड़कन महसूस हो रही थी। “छोड़ो ना पेग को!” मैंने कहा। “चल, तुझे मेरे लंड का पानी पिलाता हूं!” मेरे शब्दों में एक क्रूरता थी, पर श्रेया की आंखों में उसका जवाब एक उत्सुकता थी। वह मेरी गोद में इठलाने लगी, जैसे कोई बच्चा झूले पर झूल रहा हो।

उसने अपना एक हाथ अपनी जांघों के बीच से ले जाकर मेरे अंडकोश को दबाया। “अह चाचू!” उसने आश्चर्य से कहा। “इतना कितना पानी इकट्ठा कर रखा है आपने अपनी बॉल्स में!” उसकी उंगलियां नरम थीं, पर दबाव सटीक था। मैंने हंसते हुए कहा, “श्रेया! तुम्हारे जैसी चार लड़कियों को एक साथ पूरी रात अपने लंड पर नचा सकता हूं!” मेरा दावा अतिशयोक्तिपूर्ण था, पर उस क्षण मुझे अपनी शक्ति पर पूरा विश्वास था। श्रेया की आंखें चौड़ी हो गईं, जैसे उसने कोई अद्भुत रहस्य सुन लिया हो।

वह उठकर मेरे चेहरे की तरफ मुड़ी और मेरी जांघों पर बैठ गई। उसने अपना माथा मेरे माथे से लगाया, और मेरी छाती पर अपनी उंगलियां फिराने लगी। “चाचू! सच में आप बहुत मजबूत हो!” उसने कहा, आवाज में एक प्रशंसा का भाव। “आप एक बात सच बताओगे?” मैंने उसके स्तनों से खेलते हुए कहा, “पूछो!” उसकी त्वचा गर्म थी, और निपल्स कड़े हो चुके थे। श्रेया ने गहरी सांस ली। “आपने अब तक कितनी लड़कियों की चुदाई की है?” उसका सवाल सीधा था, बिना किसी लाग-लपेट के। मैंने झिझकते हुए कहा, “श्रेया! अनगिनत!” सच कहूं तो मैंने गिनती रखनी बंद कर दी थी।

श्रेया की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। “चाचू! सबसे कम उम्र की कौन थी?” उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। मैंने सोचा, फिर बताया, “अठारह साल की थी, जिसकी सील मैंने ही खोली थी।” श्रेया की सांस तेज हो गई। “कौन थी वो?” मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “मेरी पत्नी की बहन की बेटी।” कमरे में सन्नाटा छा गया। श्रेया ने फिर पूछा, “और सबसे बड़ी उम्र की कौन थी?” मैंने याद किया – वह पहली बार, वह भाभी, वह चालीस साल की औरत जब मैं बीस साल का था। मैंने उसे बताया। श्रेया तपाक से बोली, “अभी आपकी उम्र कितनी होगी?” मैंने कहा, “बयालीस साल।”

श्रेया मुझसे लिपट गई। “मेरी जान को देखकर कोई नहीं बोल सकता कि आपकी उम्र इतनी होगी!” उसके शब्दों में प्रशंसा थी। मैंने कहा, “श्रेया! लंड में दम होना चाहिए, उम्र से क्या फर्क पड़ता है!” मेरा जवाब उसके लिए एक सबक था। श्रेया ने मेरे उभार को भींचा। “ये बात तो है! आपका लंड बहुत मस्त है! देखो ना, थोड़ी देर में ही फिर खड़ा हो गया!” उसकी उंगलियों का स्पर्श विद्युत के झटके जैसा था।

फिर उसने एक और सवाल पूछा, जो सबसे महत्वपूर्ण था। “चाचू! अपना रिश्ता क्या हुआ? देखो ना, मैं आपसे आधी उम्र की हूं, और रिश्ते में आपकी भतीजी लगती हूं, फिर भी आपने मेरी चूत में अपना लंड घुसा दिया!” उसकी आवाज में एक आरोप था, पर उसकी आंखों में एक चुनौती। मैंने उसके नितंब दोनों हाथों से पकड़े। “क्या मैंने तुम्हारी चूत में जबरदस्ती लंड डाला?” मेरा सवाल कठोर था। श्रेया ने सिर हिलाया। “अरे नहीं चाचू! मैं ये नहीं कह रही! मर्जी तो मेरी भी थी! मैं बस ये जानना चाहती हूं कि भतीजी बेटी जैसी ही तो होती है ना!” उसके शब्दों में एक गहरा अर्थ छिपा था।

मैंने श्रेया के नितंबों को एक हाथ से कसकर फैलाया, और दूसरे हाथ की तीन उंगलियां पूरी उसकी योनि में डाल दीं। श्रेया एकदम से उछली, जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो। उसके स्तन स्प्रिंग की तरह उछलकर मेरे मुंह से लगे। मैंने बिना मौका गंवाए उसके एक निपल को दांतों में दबा लिया, और जोर से काट दिया। श्रेया चीखी, “आह मम्मी! मर गई!” उसकी आवाज में दर्द था, पर उसके चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि। मैंने उसकी योनि से उंगलियां निकालकर उसके मुंह में डाल दीं, और उसके बाल खींचते हुए कहा, “सुन श्रेया! तू अब मेरी रंडी है! साली कुतिया की औलाद! मैं अपने लंड से तुझे कल सुबह तक चोद-चोदकर एकदम रंडी बना दूंगा!”

श्रेया घू-घूं करते हुए मेरा हाथ पकड़कर अपने मुंह से मेरी उंगलियां निकाली। “आह चाचू! कोई इतनी जोर से भी काटता है क्या!” फिर वह अपना निपल पकड़कर मेरे दांतों का निशान दिखाने लगी। “देखो ना! निशान पड़ गया! कितने गंदे हो आप!” उसकी शिकायत में एक अजीब सी मिठास थी। मैंने श्रेया की दूसरी चूची को कसकर पकड़ा और उस पर भी जोर से काट दिया। उसकी गाल पर थप

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