बदलते रिश्ते और एक माँ की अंतिम इच्छा

सोहन के पिता, जो एक बैंक में प्रबंधक थे, का तबादला गोरखपुर हो गया। यह सोहन की माँ का नानी का गाँव भी था, इसलिए उन्हें वहाँ जाने में कोई परेशानी नहीं हुई। सोहन की माँ ने पहले ही रिश्तेदारों की मदद से एक अच्छा फ्लैट किराए पर ले लिया था। सोहन दिल्ली में एक कंपनी में काम करता था, लेकिन अपने माता-पिता के शिफ्टिंग में मदद करने के लिए उसे एक हफ्ते के लिए गोरखपुर आना पड़ा। काम पूरा होने के बाद, वह वापस दिल्ली चला गया।

सोहन अपनी माँ से बहुत प्यार करता था, शायद अपने पिता से ज़्यादा, क्योंकि उसके पिता बैंक के काम में हमेशा व्यस्त रहते थे। माँ के साथ ज़्यादा समय बिताने के कारण, उनका रिश्ता और गहरा हो गया था। दिल्ली लौटने के बाद, उसके साथ काम करने वाली दीपिका ने अचानक सोहन से अपने प्यार का इज़हार कर दिया। सोहन यह सुनकर हैरान रह गया, क्योंकि उसे दीपिका से ऐसी उम्मीद नहीं थी, हालाँकि काम करते-करते वे दोनों काफी करीब आ गए थे।

दीपिका ने बताया कि सोहन के सात दिन की गैरमौजूदगी ने उसे अपने प्यार का एहसास कराया और अब वह उसके बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। सोहन को ऐसा कोई खास एहसास नहीं हुआ था, शायद माँ से मिलने और घर बदलने की व्यस्तता के कारण उसका ध्यान कहीं और था। इस बीच, गोरखपुर में सोहन की माँ अपने नए माहौल में तेज़ी से घुलमिल गई थीं, क्योंकि यह उनका मायका था और रिश्तेदार अक्सर उनसे मिलने आते रहते थे।

उन्हीं दिनों, सोहन की माँ की पड़ोस में रहने वाली एक शिक्षिका के परिवार से अच्छी पहचान हो गई थी। उनकी आर्थिक स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं थी; शिक्षक ट्यूशन पढ़ाते थे और उनकी पत्नी बुटीक का काम करती थीं। उनकी एक बेटी थी, अंजलि, जो पढ़ाई कर रही थी। अंजलि से मिलकर सोहन की माँ को वह बहुत शालीन और सुशील लगी। उन्होंने सोचा कि अंजलि सोहन के लिए एक अच्छी जीवनसंगिनी बनेगी।

सोहन की माँ ने अंजलि की माँ को भरोसा दिलाया कि अंजलि की शादी की चिंता न करें और पहले उसे अपनी पढ़ाई पूरी कर सक्षम बनने दें। अंजलि के माता-पिता सोहन के परिवार के अच्छे स्वभाव से बहुत प्रभावित हुए और खुश थे। इस तरह करीब दो साल बीत गए। एक रात अचानक सोहन की माँ की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

सोहन को जैसे ही अपनी माँ की गंभीर हालत का पता चला, वह तुरंत दिल्ली से गोरखपुर पहुँचा। अस्पताल में माँ को देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगा, क्योंकि उनकी हालत बहुत नाज़ुक थी। डॉक्टरों ने बचने की उम्मीद कम बताई थी। पिता को देखकर सोहन ने खुद को संभाला, सोचा कि अगर वह भी टूट गया, तो पिता का क्या होगा? माँ की अंतिम इच्छा थी कि वह अंजलि से शादी करे, यह सुनकर सोहन दुविधा में पड़ गया।

सोहन ने माँ को आराम करने को कहा और उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी इच्छा पूरी होगी। दो दिन बाद सोहन की माँ का निधन हो गया। अपनी माँ के क्रिया-कर्म करते हुए सोहन ने मन बना लिया था कि अब उसे गोरखपुर में ही रहना होगा। उसने कंपनी में फ़ोन करके बताया कि अब वह नौकरी जारी नहीं रख पाएगा, क्योंकि माँ के जाने के बाद उसे पिता का भी ख्याल रखना है और माँ की अंतिम इच्छा भी पूरी करनी है।

आखिरकार, सोहन ने दीपिका को फ़ोन किया और उसे बताया कि वह अब दिल्ली नहीं आ पाएगा और उसने अपनी नौकरी भी छोड़ दी है। उसने कहा कि अब उसे गोरखपुर में ही रहना होगा। यह सुनकर दीपिका चौंक गई। उसने तुरंत कहा कि अगर उसे गोरखपुर में ही रहना है, तो वह दिल्ली छोड़कर उसके साथ गोरखपुर नहीं आएगी। सोहन यह सुनकर खुश था या दुखी, यह उसे समझ नहीं आया। वह खुश था कि माँ की इच्छा पूरी कर पाएगा, और दुखी था क्योंकि उसे दीपिका की हकीकत पता चल गई थी। साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाली लड़की एक शहर नहीं बदल सकती थी। सोहन ने दीपिका को भुलाकर गोरखपुर में अपने नए जीवन और जिम्मेदारियों को अपनाने का फैसला कर लिया।

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