बंदर और मगरमच्छ की दोस्ती

समुद्र के किनारे एक विशाल जामुन का पेड़ था, जिस पर रक्तमुख नाम का एक फुर्तीला बंदर रहता था। उस पेड़ के जामुन अत्यंत मीठे और रसीले थे, जिन्हें खाकर बंदर अपना जीवन आनंद से व्यतीत करता था। एक दिन, एक मगरमच्छ समुद्र से निकलकर उसी जामुन के पेड़ के नीचे धूप सेंकने आया। बंदर ने उसे देखा और मित्रता के भाव से कुछ मीठे जामुन तोड़कर नीचे गिरा दिए। मगरमच्छ ने जामुन खाए और बहुत प्रसन्न हुआ, जिससे उनकी दोस्ती की नींव पड़ी।

यह उनकी दोस्ती की शुरुआत थी। हर दिन, मगरमच्छ बंदर से मिलने आता और बंदर उसे मीठे जामुन खिलाता। मगरमच्छ अपने हिस्से के कुछ जामुन अपनी पत्नी के लिए भी ले जाता। एक दिन, मगरमच्छ की पत्नी ने मीठे जामुन खाकर सोचा कि जो बंदर ऐसे मीठे फल रोज़ खाता है, उसका दिल कितना मीठा होगा। उसने अपने पति से उस बंदर का दिल लाने की ज़िद की, ताकि वह उसे खाकर अपने मन को तृप्त कर सके। मगरमच्छ अपनी पत्नी की इस विचित्र इच्छा को सुनकर दुविधा में पड़ गया, क्योंकि वह बंदर को अपना मित्र मानता था।

मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को समझाने की बहुत कोशिश की कि यह गलत है, लेकिन वह अपनी बात पर अड़ी रही। आखिर मगरमच्छ ने अपनी पत्नी की ज़िद के आगे हार मान ली और एक योजना बनाई। वह बंदर के पास गया और उससे कहा, “मेरे दोस्त, मेरी पत्नी तुम्हें भोजन पर अपने घर बुला रही है। उसने तुम्हारे लिए विशेष पकवान बनाए हैं और तुमसे मिलना चाहती है।” बंदर यह सुनकर बहुत खुश हुआ और मगरमच्छ के साथ जाने को तुरंत तैयार हो गया। मगरमच्छ उसे अपनी पीठ पर बिठाकर समुद्र में गहरे पानी की ओर ले जाने लगा।

जब वे समुद्र के बीच पहुँचे, जहाँ ज़मीन दिखाई नहीं दे रही थी, तो मगरमच्छ ने बंदर को अपनी पत्नी की दिल खाने की इच्छा के बारे में बताया। यह सुनकर बंदर घबरा गया, लेकिन उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए शांत रहने की कोशिश की। उसने मगरमच्छ से कहा, “अरे मित्र! तुमने मुझे यह बात पहले क्यों नहीं बताई? हम बंदरों का दिल तो पेड़ पर ही रहता है। जब हम नीचे आते हैं, तो उसे वहीं छोड़ आते हैं। चलो, जल्दी वापस चलो, ताकि मैं अपना दिल लेकर आ सकूँ, अन्यथा तुम्हारी पत्नी भूखी रह जाएगी।”

मगरमच्छ मूर्ख था और उसने बंदर की इस बात पर तुरंत विश्वास कर लिया। वह तुरंत अपनी पीठ पर बंदर को लेकर वापस पेड़ की ओर चला। जैसे ही वे किनारे पर पहुँचे, बंदर फुर्ती से उछलकर पेड़ पर चढ़ गया। उसने ऊपर से मगरमच्छ को कहा, “मूर्ख मगरमच्छ! क्या कभी किसी का दिल शरीर से अलग रह सकता है? तूने धोखे से मुझे मारने की कोशिश की। आज से हमारी दोस्ती खत्म।” मगरमच्छ अपनी मूर्खता और धोखेबाजी पर पछताता हुआ वापस समुद्र में चला गया, और इस प्रकार बंदर ने अपनी जान बचा ली।

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