चंदन का वन और नादान लकड़हारा

एक समय की बात है, एक राजा शिकार करने जंगल गए। उनकी नज़र एक हिरन पर पड़ी और उनका घोड़ा उसके पीछे दौड़ने लगा। अचानक हिरन झाड़ियों के पीछे गायब हो गया। सूर्य अस्त हो रहा था और राजा अपने महल से मीलों दूर आ चुके थे। रात में जंगल के हिंसक जीवों का खतरा बढ़ जाता, इसलिए वापसी मुश्किल थी। काफी दूर उन्हें एक झोपड़ी में रौशनी दिखाई दी। राजा पास पहुँचे तो देखा कि एक आदमी अलाव जला रहा था। राजा ने खुद को एक मुसाफिर बताया जो रास्ता भटक गया था। लकड़हारे ने उन्हें राजा के रूप में पहचान लिया और पूछा, “क्या आप आज की रात इस गरीब की झोपड़ी में ठहरना पसंद करेंगे?” उसने राजा की खूब सेवा की।

सुबह जाते समय राजा ने अपनी एक अंगूठी उतारकर उसे दी और कहा कि कोई भी संकट आए तो इस अंगूठी को दिखाकर वह राजमहल में उनसे मिल सकता है। कहते हैं समय एक जैसा नहीं रहता। बरसात का मौसम आया तो सूखी लकड़ी मिलना बंद हो गई। घोर बारिश में उसकी झोपड़ी भी तहस-नहस हो गई और भूखों मरने की नौबत आ गई। पत्नी ने उसे तुरंत उस अंगूठी की याद दिलाई। वह राजधानी पहुँचा। राज कर्मचारी ने पहले तो राजमुद्रा वाली अंगूठी देखकर उसे चोर समझा, लेकिन सारी कहानी सुनकर उसे राजा के सामने पेश किया।

राजा ने उसकी व्यथा सुनकर उसे एक चंदन का वन उसके नाम कर दिया और इसके अलावा उसे सौ स्वर्ण मुद्राएँ भी दीं। लकड़हारा खुशी-खुशी वापस घर आ गया। लगभग एक वर्ष बीत गया। राजा यह देखने के लिए उत्सुक थे कि क्या वह अब भी भोला-भाला लकड़हारा है या धनवान बनकर बदल गया है। यही सोचकर एक दिन वह अकेले ही उसकी घर की तरफ चल पड़े। यह क्या, आज भी वही झोपड़ी थी, खुशहाली का तो कोई नामोनिशान नहीं था। झोपड़ी खाली थी और चंदनवन पूरी तरह उजड़ा पड़ा था।

तभी एक स्वर सुनाई दिया, “अन्नदाता!” लकड़हारा राजा के पैरों पर गिर पड़ा। “तुमने इस चंदनवन का यह क्या हाल बना दिया?” राजा ने आश्चर्य से पूछा। लकड़हारे ने उत्तर दिया, “अन्नदाता, मेरा काम है लकड़ियों को कोयला बनाकर बेचना।” राजा दुखी होकर बोले, “अरे मेरे भोले मित्र, तुमने चंदन और साधारण लकड़ी में फर्क भी नहीं समझा। मैंने सोचा था कि तुम चंदन की कीमती लकड़ी बेचकर धनवान बन जाओगे और सुखी जीवन व्यतीत करोगे। पर अफ़सोस कि ऐसा हो ना सका। यह सुंदर चंदनवन उजाड़ गया।” राजा ने समझा कि कुछ लोग अपने सामने मौजूद मूल्यवान चीज़ों को पहचान नहीं पाते।

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