गुरु का अनोखा चुनाव

प्राचीन काल में एक महान गुरु थे जिनके पास अनेक शिष्य शिक्षा ग्रहण करते थे। सभी शिष्य गुरुजी का सम्मान करते और उनके उपदेशों का पालन करते थे, परंतु उनमें से एक शिष्य ऐसा था जो शराब पीने का आदि था। वह न तो गुरुजी की बातों पर ध्यान देता था और न ही नियमों का पालन करता था, जिससे अन्य शिष्य उससे दूरी बनाए रखते थे।

समय अपनी गति से चलता रहा और गुरुजी वृद्ध होते चले गए। सभी शिष्यों के मन में यह उत्सुकता रहती थी कि गुरुजी अपना उत्तराधिकारी किसे चुनेंगे और अपने सभी गूढ़ रहस्यों का ज्ञान किसे देंगे। इस विचार से प्रेरित होकर, प्रत्येक शिष्य अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने और गुरु की नजरों में स्वयं को योग्य दिखाने का प्रयास करने लगा। वे अपनी अच्छी आदतों और गुणों का प्रदर्शन करने लगे।

शिष्यों को यह विश्वास था कि गुरुजी किसी सबसे प्रिय और योग्य शिष्य को ही चुनेंगे। परंतु जब गुरुजी का अंतिम समय निकट आया, तो उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए अपने उस शराबी शिष्य को बुलाया और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यह निर्णय देखकर सभी शिष्य स्तब्ध रह गए और उनके मन में क्रोध और निराशा भर गई।

इस अप्रत्याशित घोषणा पर सभी शिष्यों ने मिलकर तीव्र विरोध किया और गुरुजी से पूछा, “आपने ऐसा अन्यायपूर्ण निर्णय क्यों लिया? क्या हमने गलत गुरु का चयन किया था?” तब गुरुजी ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “तुम सभी ने केवल अपने सद्गुणों का प्रदर्शन किया, परंतु तुम्हारी बुराइयों और छिपे हुए अहंकार के विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं है। लेकिन इस शराबी शिष्य के मैं गुण और अवगुण, दोनों से भली-भांति परिचित हूँ। अक्सर गुणों के पीछे घमंड और अभिमान छिपा होता है, इसलिए मैंने उसे चुना है जिसके हर पहलू को मैं जानता हूँ।”

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