जीवन का सबसे बड़ा पाठ

एक शांत बगीचे में, एक बुजुर्ग व्यक्ति बेंच पर गुमसुम बैठा था। उसके चेहरे पर जीवन भर के अनुभवों की गहरी लकीरें थीं, और आँखों में कुछ पुरानी उदासी झलक रही थी। खेलते हुए कुछ बच्चे उसे देख रहे थे। उनकी मासूमियत ने उन्हें पास खींच लिया। एक छोटी बच्ची ने साहस करके पूछा, “दादाजी, आप इतने चुप क्यों हैं? क्या आप हमें कोई कहानी सुनाएँगे?”

बूढ़े व्यक्ति ने पहले तो मना करने का इशारा किया, लेकिन बच्चों की उम्मीद भरी आँखों को देखकर उसका मन बदल गया। उसने धीरे से कहा, “कहानी तो सुनाऊँगा, पर यह किसी राजा-रानी की नहीं, बल्कि मेरी अपनी ज़िंदगी की कहानी होगी।” बच्चे उत्सुकता से उसके चारों ओर बैठ गए, अपनी छोटी-छोटी आँखें उस पर गड़ाए हुए।

उसने गहरी साँस ली और बोला, “जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तो मेरे मन में दुनिया बदलने का जोश था। मुझे लगता था कि मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ, पूरी दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकता हूँ। कोई चिंता नहीं थी, बस बड़े-बड़े सपने थे। समय बीता और मैं जवान हुआ, लेकिन दुनिया को बदलना तो पहाड़ तोड़ने जैसा लगा।”

“फिर मैंने सोचा कि शायद दुनिया नहीं, पर मैं अपने देश को बदल सकता हूँ। मैंने अपनी सारी ऊर्जा उसी दिशा में लगा दी। लेकिन यह भी आसान नहीं था। देश को बदलना भी एक जटिल चुनौती थी। और समय बीतता गया। जब मैं और बड़ा हुआ, तब मैंने अपने आस-पास के लोगों, अपने परिवार और मित्रों को बदलने की कोशिश की, सोचा कि शायद यहीं से शुरुआत होगी।”

“लेकिन अब, इस बुढ़ापे की दहलीज़ पर खड़ा हूँ, तो मुझे एक सच्चाई समझ आई है।” उसकी आवाज़ में थोड़ी भारीपन थी। “काश! मैंने यह पहले समझा होता। मैंने हमेशा दूसरों को बदलने का सोचा, पर कभी खुद को बदलने की कोशिश नहीं की। अगर मैंने पहले खुद को बदला होता, तो शायद मेरी अच्छाई से प्रेरणा लेकर मेरा परिवार बदल जाता।”

“और यदि मेरा परिवार बदलता, तो शायद उससे समाज, देश और अंततः दुनिया में भी सकारात्मक बदलाव आता। लेकिन मैंने उलटा रास्ता चुना।” उसने बच्चों की ओर देखा, “बच्चों, तुम यह गलती मत करना। अपने लक्ष्यों पर अडिग रहना, लेकिन सबसे पहले स्वयं को सुधारना। जब तुम खुद को सुधारोगे, तो बाकी सब अपने आप होता चला जाएगा। अपने अंदर बदलाव लाना ही असली शक्ति है।”

Leave a Comment