जीवन का सच्चा सबक

एक समय की बात है, एक व्यक्ति जीवन के पथ पर भटक रहा था। वह अपने खोए हुए ‘खजाने’ की तलाश में एक पुराने, शांत घर में पहुँचा। घर की सूनी दीवारें और खाली कमरे उसकी अपनी आंतरिक खालीपन को दर्शाते थे। वह सब कुछ छोड़कर आया था, अपने रिश्ते, अपना अतीत। उसे लगा जैसे कुछ महत्वपूर्ण यहाँ पीछे छूट गया है, जिसे खोजने के लिए वह बेचैन था।

घर में टहलते हुए, उसे पुरानी यादें घेरे लगीं। परदों पर पड़े चित्र, अधूरी पेंसिल के निशान—सब कुछ एक भूली हुई कहानी कह रहे थे। बाहर धीमी पड़ती रोशनी और पेड़ों से छनकर आती सूरज की किरणें उसके मन की उलझन को और गहरा कर रही थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह वास्तव में क्या ढूंढने आया है, उसके हाथ तो खाली थे, फिर भी एक उम्मीद उसे खींच रही थी।

काफी देर की खोजबीन के बाद, उसे लगा कि जिस खजाने की वह तलाश कर रहा था, वह कोई भौतिक वस्तु नहीं थी। घर की ‘सुरक्षित आत्मा’ ने उसे एक अंदरूनी सुकून का अहसास दिलाया। यह खजाना तो उसकी अपनी यादों में, उन पलों में छिपा था जब वह बिना किसी चिंता के खुश रहता था। उसे उस बगीचे की याद आई जहाँ वह कभी सेब छिपाकर हँसा करता था। वह खुशी, वह मासूमियत ही उसका सच्चा खजाना थी।

जब उसे यह बोध हुआ तो उसका हृदय तेज़ी से धड़क उठा। एक प्रकाश पुंज उसके भीतर समा गया, और उसने चिल्लाकर कहा, “ओह! तो यही मेरा गड़ा खजाना था!” उस क्षण उसे जीवन का एक गहरा सबक मिला: “जिंदगी के सफर में बस इतना ही सबक सीखा है, सहारा कोई-कोई ही देता है, धक्का देने के लिए हर शख्स बैठा है।” उसे श्री राम और वानरों की कहानी याद आई, यह सोचकर कि सच्चे साथी कितने दुर्लभ होते हैं।

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