मिर्जापुर का संजीव एक गहन किताबी कीड़ा था। उसकी दुनिया किताबों से शुरू होकर किताबों में ही समाप्त होती थी। पाठ्यपुस्तकों के अलावा भी वह बहुत कुछ पढ़ता था, लेकिन अत्यधिक ज्ञान भी कभी-कभी बोझ बन जाता है। संजीव के साथ भी यही हुआ। दुनिया से बेखबर, वह किताबों में इतना खो गया कि अचानक उसे उनसे चिढ़ होने लगी। मन उचट गया, उसने सोचा कुछ समय का विराम लेना चाहिए।
इसी विचार के साथ, संजीव ने घूमने का निश्चय किया। वह दिल्ली गया, फिर मुंबई और कोलकाता होते हुए वापस मिर्जापुर लौटा। इतना घूमने के बाद भी उसका मन पढ़ने का नहीं कर रहा था। उसे खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि जिसे कल तक किताबों के सिवा कुछ नहीं दिखता था, आज उसे किताब ही अच्छी नहीं लग रही थी। उसने एक बार फिर कोशिश की, पर मन नहीं लगा। बैठकर सोचने लगा कि आखिर कमी कहाँ है।
इतने दिनों तक घूमने और अलग-अलग लोगों से मिलने के कारण संजीव ने मानवीय व्यवहार पर विचार करना शुरू किया। इस विषय को गहराई से समझने के लिए, उसने फिर से किताबें पढ़नी शुरू कीं, लेकिन इस बार भारतीय लेखकों की बजाय विदेशी लेखकों की रचनाओं में उसने खुद को खो दिया। उसने अनगिनत किताबें पढ़ीं, जो मानव व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती थीं।
अपनी नई पढ़ाई को परखने के लिए, एक शाम संजीव बाइक से घर से निकला। कुछ दूर जाकर उसने सड़क किनारे खड़े लोगों के हाव-भाव को ध्यान से देखना शुरू किया। उसे किताबों में पढ़ी बातें सही लगने लगीं। वह बहुत गौर से लोगों को देख रहा था, उनके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। तभी उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो उसे लगातार देखे जा रही थी।
संजीव ने उस लड़की को देखा, उसके हाव-भाव पर गौर किया। अपने ज्ञान के आधार पर उसे लगा कि लड़की के दिल में उसके लिए कुछ तो है। काफी देर तक दोनों एक-दूसरे को देखते रहे। संजीव अपने पढ़े हुए ज्ञान से यह सिद्ध करने में लगा था कि लड़की उसे पसंद करती है। तभी वह लड़की अपनी स्कूटी सीधी करके वहाँ से चली गई।
संजीव भी वापस घर लौटने लगा। तभी एक स्कूटी सवार लड़की ने तेज़ी से उसे ओवरटेक किया। संजीव भी जोश में आकर अपनी बाइक की गति बढ़ा दी, लेकिन लड़की को पीछे नहीं छोड़ पा रहा था। वह जितना स्पीड करता, लड़की उतना ही अपनी स्कूटी की गति बढ़ा देती। यह साफ़ था कि वह लड़की संजीव को ओवरटेक नहीं करने दे रही थी।
संजीव उसे ओवरटेक करना चाहता था। उसने गाड़ी की गति बढ़ाकर स्कूटी के समानांतर किया। जब उसने लड़की का चेहरा देखा, तो देखता ही रह गया, क्योंकि वह वही लड़की थी जो कुछ देर पहले उसे देखे जा रही थी। तभी सामने से गाड़ी आने की वजह से उसे ब्रेक लेना पड़ा, और लड़की आगे निकल गई। अब संजीव ने उससे आगे निकलने के बजाय उसका पीछा करना शुरू कर दिया।
जहाँ लड़की खुश हो रही थी कि उसने ओवरटेक नहीं करने दिया, वहीं संजीव अब जानबूझकर उसके पीछे-पीछे गाड़ी चला रहा था, ताकि उसका घर पता कर सके। शायद यह बात अब लड़की को भी पता चल गई। इसलिए वह एक गली से दूसरी और फिर तीसरी गली में स्कूटी घुमाने लगी। संजीव भी उसके पीछे-पीछे घूमना शुरू कर दिया।
संजीव का ध्यान तब टूटा जब उसे पता चला कि वह एक ही गली में दो-दो बार चक्कर लगा रहा है। मतलब साफ़ था कि लड़की उसे गोल-गोल घुमा रही थी। यह भी तय था कि लड़की का घर इसी दो-तीन रास्तों में कहीं था, लेकिन आखिर कौन सा, यह उसे पता नहीं चल पा रहा था। न ही वह लड़की के बारे में कुछ और जान पा रहा था। उसे अब गुस्सा आ रहा था कि लड़की बेवजह उसे घुमाए जा रही है।
करीब दो घंटे तक गोल-गोल घूमने के बाद, आखिरकार संजीव ने अपने घर का रास्ता पकड़ ही लिया। घर आकर उसने उन सभी किताबों को फेंक दिया जो वह पढ़ रहा था, क्योंकि उसकी पढ़ाई उस स्कूटी वाली लड़की ने एक अनूठे तरीके से गलत साबित कर दी थी। उसके दिल-दिमाग में क्या चल रहा था, वह वाकई समझ नहीं पाया। इस तरह से उसका किताबी ज्ञान अधूरा ही रह गया, लेकिन उसे इंसान के व्यवहार की अप्रत्याशितता का एक नया, आकर्षक सबक मिल गया। यह अनुभव उसे जीवन की एक अनकही कहानी की शुरुआत लग रहा था।