मामा के लंड का दीवाना: एक युवा की गांड चुदाई की कहानी

मेरे मामा के प्रति मेरे मन में एक अजीब सी आकर्षण की भावना उमड़ने लगी थी। उनका शरीर मजबूत और आकर्षक था, जिसे देखकर मेरे अंदर एक अजीब सी उत्तेजना जाग उठती। मैं उनके बड़े लंड का दीवाना हो गया था, परंतु उसका आकार इतना विशाल था कि वे मेरी गांड में प्रवेश करने से हिचकिचा रहे थे। इसलिए वे केवल मेरा मुखचोदन करके ही संतुष्ट हो रहे थे, जिससे मेरे मन में एक अधूरापन सा छूट गया था। मैं चाहता था कि वे मुझे पूरी तरह से अपना बना लें, परंतु उनकी चिंता मेरी सुरक्षा को लेकर थी।

पिछले भाग में आपने पढ़ा था कि मैं मामा से अपनी गांड मरवाने की तीव्र इच्छा रखता था। पापा ने मुझसे उनके साथ घर चलने के लिए कह दिया था, जिससे मैं गहरी चिंता में डूब गया। मेरे मन में विचारों का तूफान उठ रहा था—क्या मैं अपनी इस गुप्त इच्छा को पूरा कर पाऊंगा? क्या मामा मेरी इस भावना को समझ पाएंगे? इन सवालों ने मुझे अंदर से हिला कर रख दिया था। मैं अपने कमरे में बैठा उन पलों को याद कर रहा था जब मामा ने मुझे छुआ था, उनकी गर्म सांसें मेरे कानों से टकरा रही थीं।

जब पापा हॉल में आए, तो मामा तुरंत उनसे बातचीत में व्यस्त हो गए। उनकी आवाज में एक सामान्य सी उत्सुकता थी, परंतु मैं जानता था कि उनके मन में कुछ और ही चल रहा है। ‘जीजाजी, आप समीर को कहीं ले जा रहे हैं?’ मामा ने पूछा, उनकी नजरें मेरी तरफ एक क्षण के लिए मुड़ीं। पापा ने जवाब दिया, ‘हां, एक काम था, तो उसी वजह से उसे ले जा रहा हूँ!’ उनकी आवाज में कोई खास उत्साह नहीं था। मामा ने फिर पूछा, ‘ओह … अच्छा क्या आप इसे किसी और दिन नहीं ले जा सकते?’ उनकी आवाज में एक हल्की सी घबराहट झलक रही थी।

पापा हैरानी से बोले, ‘क्यों? क्या बात है?’ मामा ने जल्दी से सफाई दी, ‘नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं है, पर मुझे नहीं पता था कि आप आज उसे ले जाने वाले हैं। अगर पता होता, तो मैं कोई प्रोग्राम नहीं बनाता!’ उनके चेहरे पर एक मासूमियत भरी मुस्कान थी। पापा ने उत्सुकता से पूछा, ‘कैसा प्रोग्राम?’ मामा ने कहा, ‘दरअसल यहां मेरा एक दोस्त है, उसका आज बर्थडे है … उसने अपने दोस्तों को बुलाया था। मुझे भी इनविटेशन था, तो सोचा समीर को भी साथ ले चलूँ, इंजॉय कर लेगा … क्यों, समीर?’ ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरी तरफ देखा, उनकी आंखों में एक गहरा इशारा था।

मैंने मामा की खिंचाई करते हुए कहा, ‘लेकिन मामा, मुझे पापा के साथ जाना है। उन्होंने पहले ही बोल रखा था कि उनका कुछ काम है!’ मेरी आवाज में एक नकली अनिच्छा थी। पापा ने जवाब दिया, ‘ठीक है समीर, कोई बात नहीं … तुम अपने मामा के साथ चले जाओ, हम किसी और दिन चले जाएंगे!’ मैंने सहमति जताई, ‘ठीक है पापा, जैसा आप कहें!’ मेरे घर वालों को लग रहा था कि मैं कितना भोला हूँ, लेकिन उन्हें क्या पता, उनका बेटा क्या गुल खिला रहा था। मामा ने चुपके से मेरी तरफ देखा और मुझे एक मुस्कान दी, जिससे मेरा दिल धड़कने लगा।

पापा के जाते ही मामा ने मां से ऊपर जाने को कहा और मेरी तरफ देखकर ऊपर चले गए। मैं उनका इशारा समझ गया था—मुझे भी अब डील पूरी करनी थी। हालाँकि डील पूरी करने में मुझे भी मजा आने वाला था। मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी दौड़ गई थी। मामा ऊपर जा चुके थे। मैंने थोड़ा इंतजार किया, अपनी सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हुए, और फिर अपने रूम में चला गया। दरवाजा खोलते ही वहां का नजारा देखकर मैं हैरान रह गया।

मामा ने अपनी पैंट घुटनों तक सरका रखी थी और अपना खड़ा लंड लेकर मेरे सामने खड़े थे। उनका शरीर चमक रहा था, और उनकी आंखों में एक जंगली चमक थी। उन्होंने मुझे दरवाजा बंद करने तक का मौका नहीं दिया और मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। वे मुझे पागलों की तरह चूमने लगे, उनके होंठ मेरे होंठों पर जबरदस्ती से चिपक गए। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ, क्योंकि वे मुझे कुछ करने ही नहीं दे रहे थे। मुझ पर ऐसा अचानक हमला हुआ था कि मैंने बस अपनी आंखें बंद कर लीं और उनकी एक-एक हरकत को समझने की कोशिश करने लगा।

वे मेरे गले पर पागलों की तरह काट रहे थे, उसे कस रहे थे, चूम रहे थे। मेरे होंठों को वे पागलों की तरह चूस रहे थे, मेरे दोनों निप्पलों को जोर-जोर से दबा रहे थे। उन्होंने मुझे दीवार से सटा दिया और मेरे हाथों को अपने हाथों से जकड़ लिया। मैं पागल होने की कगार पर था, मेरे शरीर में आग सी लग गई थी। उन्होंने ऐसी पागलपन भरी हरकतें करते हुए मेरी पैंट भी खोल दी। उनका लंड मेरे खड़े लंड से टकरा रहा था, जैसे वह मेरी चूत में लंड डाल रहे हों। एक दीवार से दूसरी दीवार तक हम दोनों बस टकरा रहे थे, लेकिन एक-दूसरे को मसलना और चूमना नहीं छोड़ा।

जल्दी-जल्दी उन्होंने अपने एक हाथ से दरवाजा बंद किया और कुंडी लगा दी। उनकी हरकतें मुझे पागल कर रही थीं, मैं अपने आपे से बाहर हो रहा था। मैंने अपनी पैंट उतार दी और उन्हें बिस्तर पर धकेल दिया। उनके खड़े लंड को मैंने अपने हाथों से पकड़ा और उसे चूमने लगा। मैं उनका लंड बड़े शौक से चूस रहा था, एकदम पागलों की तरह बड़े जोर-जोर से उसे मैं अपने मुँह में भर रहा था। वे बस मद भरी आवाजें निकाल रहे थे—‘आहह … म्म्म्म!’ उन्होंने मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे मुँह में लंड जोर-जोर से ठूँसने लगे।

मुझे अब दर्द हो रहा था, लेकिन वे बहुत मजा ले रहे थे। शायद ये मेरी सजा थी … उन्हें तड़पाने की … उन्हें तरसाने की, जिसे मुझे सहना था। फिर भी मैं बहुत खुश था, क्योंकि मुझे अब लंड चूसने की आदत पड़ चुकी थी। मुझे अपना हथौड़ा चुसवा कर वे मुझे जलील करना चाहते थे, उनके बर्ताव से तो ऐसा ही लग रहा था। लेकिन उनके मर्दाना शरीर का हर झटका सहने के लिए मैं तैयार था। उनसे मिलने वाला हर दर्द मेरे अन्दर खुशी और उत्तेजना भर रहा था। मैं शायद अपने आप को कोई लड़की समझने लगा था, जिसका काम सिर्फ अपने मर्द को खुश करना था।

मैं अपने मर्द की हर तकलीफ, हर दर्द को अपने अन्दर समाने की पूरी कोशिश कर रहा था। उनका हर झटका मुझे मेरे गले तक महसूस हो रहा था। लेकिन मेरा मर्द मुझे सिर्फ तकलीफ नहीं देना चाहता था, वह मुझे खुशी देना चाहता था—दुनिया की सबसे बेहतरीन खुशी, जिसे लेने के लिए हर शख्स तड़पता है। उन्होंने मुझे पलटा और मेरी गांड पर अपनी जीभ लगा दी। हम दोनों 69 की पोजीशन में थे। मैं उनका लंड वैसे ही चूस रहा था, और वे मेरी गांड के अन्दर अपनी जीभ घुमा रहे थे। मेरे अन्दर करंट दौड़ गया था, जैसे-जैसे वे चूसते, वैसे-वैसे मैं और भी जोर से उनके लंड को चूसने लगता।

मैं तो बस अपने मामा के लंड का दीवाना हो गया था। उससे निकलने वाला प्रीकम मेरे मुँह में स्वाद का काम कर रहा था। उसका खट्टा-मीठा टेस्ट मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। नींबू जैसे सुपाड़े पर मैं अपने होंठ गोल-गोल घुमा रहा था। उन्होंने मेरे छेद में अपनी उंगली डालने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं जा रही थी। मेरा छेद वाकयी बहुत टाइट था। उन्होंने अपनी उंगली को अपने थूक से गीला किया और फिर से उसे मेरे छेद में डालने लगे। जैसे ही उन्होंने उंगली अन्दर डाली, मैं हिल गया और मुझे दर्द होने लगा, अन्दर जलन होने लगी। मैंने उनका लंड अपने मुँह से निकाल लिया, मैं दर्द से कराह रहा था।

उनके मर्दाना शरीर की वजह से उनकी उंगलियां भी काफी बड़ी थीं। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और फिर से अपने लंड पर झुका दिया। मैंने उसे मुँह में भर लिया और चूसने लगा, लेकिन उनकी उंगली अभी भी मेरे छेद में थी। वे धीरे-धीरे उसे हिला रहे थे। फिर उन्होंने उसे बाहर निकाला, अपने थूक से थोड़ा और गीला किया, और फिर अन्दर डाल दिया। मेरा दर्द अब कुछ कम हो गया था, और मुझे मजा आने लगा। जैसे-जैसे उनकी उंगली अन्दर-बाहर होती, मैं और भी जोर से उनके लंड को मुँह में भर लेता। आधा घंटा से ज्यादा का समय हो गया था, लेकिन फिर भी मेरे छेद और मेरे मुँह की ठुकाई एक साथ हो रही थी।

मेरा छेद अ

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