मेरी पहली रात: एक गे बॉय की शुरुआत

उन्नीस वर्ष की कोमल उम्र में, मैं दिल्ली के एक छोटे से किराए के कमरे में रहता था। मेरा शरीर बिल्कुल चिकना और नाजुक था, जैसे किसी ने मुझे संगमरमर से तराशा हो। उस दिन छुट्टी थी, और सुबह से ही मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी घर कर गई थी। कमरे की खिड़की से आती धूप में उड़ती धूल के कण मुझे बार-बार अपनी ओर खींचते प्रतीत हो रहे थे। मैंने एक ठंडी बियर की बोतल खोली, उसके शीशे पर जमी पानी की बूंदें मेरी उंगलियों को सिहरन दे गईं। एक सिगरेट सुलगाते हुए, मैं बाथरूम के कमोड पर बैठ गया। वहां की टाइल्स की ठंडक मेरे नंगे नितंबों को चुभ रही थी। मोबाइल की स्क्रीन पर एक विडियो चल रहा था, जहां एक गहरे रंग का, मांसपेशियों से भरा पुरुष एक पतले-दुबले, मेरी ही तरह चिकने शरीर वाले लड़के को अपने आगोश में लिए हुए था। उस लड़के की हर आह, हर मरोड़ मेरे भीतर एक अजनबी सी गूंज पैदा कर रही थी। मेरे हाथ में एक मोटी मोमबत्ती थी, जिसे मैं अनजाने ही अपने शरीर के उस संवेदनशील हिस्से के पास ले जा रहा था। एक अजीब सी जिज्ञासा और उत्तेजना मेरे भीतर समांदर की लहरों की तरह उठ रही थी। सिगरेट की राख टपकी और मैंने अपने शरीर को एक तीव्र झटके के साथ छोड़ दिया। उसके बाद का पल एक खालीपन लेकर आया, जैसे कोई रहस्य अभी-अभी खुला हो और फिर तुरंत बंद हो गया हो।

स्नान करने के बाद, मैंने केवल एक ढीली चड्डी पहनी। गर्मी की दोपहर की नींद लेते हुए, मेरे दोस्त किशोर का फोन आया। उसकी आवाज में हमेशा की तरह एक शरारत भरा उत्साह था। “यार, आज पार्टी है मेरे यहाँ!” मैं मना नहीं कर पाया। किशोर का कमरा हमेशा जीवंत और अस्त-व्यस्त रहता था। उस दिन भी वहां चिकन की महक और ठंडी बियर की खुशबू हवा में तैर रही थी। हमने किस्से सुनाए, हंसे, और धीरे-धीरे शराब की मस्ती ने हमारे बीच की सारी सीमाएं धुंधली कर दीं। समय कब रात में बदल गया, पता ही नहीं चला। नशे की हल्की सी चक्कर में, मैंने बर्तन साफ करने की कोशिश की और सब्जी का तेल अपने कपड़ों पर गिरा बैठा। किशोर की हंसी गूंजी, “अरे साले, अब ये क्या कर दिया!” उसने मुझे बाथरूम जाकर कपड़े बदलने को कहा। मैं बेफिक्र होकर अंदर गया, दरवाजा बंद करना भूल गया। पानी की आवाज के बीच, मैंने अचानक महसूस किया कि कोई देख रहा है। मुड़कर देखा तो किशोर दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसकी नजरें मेरे शरीर पर टिकी थीं। “अरे, तेरे तो बिल्कुल लड़कियों जैसे पैर हैं,” उसने कहा, और उसकी आवाज में मजाक के साथ-साथ एक गहरी, अनकही चाहत भी छिपी थी। मैंने भी मजाक में अपनी चड्डी थोड़ी नीचे की। वह पल एकदम स्थिर हो गया। फिर, जैसे कोई बांध टूटा हो, किशोर तेजी से आगे बढ़ा। उसके हाथों ने मेरी चड्डी नीचे खींच दी। उसकी सांसें मेरी जांघों को छू रही थीं। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, डर और उत्सुकता का एक अद्भुत मिश्रण मेरे भीतर उबल रहा था।

किशोर का शरीर मेरे से बिल्कुल अलग था – लंबा, मजबूत, और उसकी त्वचा पर एक अलग ही किस्म का आकर्षण था। उसने अपने कपड़े उतारे। उसके सामने मेरा छोटा, नाजुक शरीर और भी कोमल लग रहा था। पहली बार मैं किसी के सामने इस तरह नंगा खड़ा था। शर्म और एक अजीब सी गर्व की भावना एक साथ उमड़ रही थी। वह पीछे से आया, उसकी गर्म सांसें मेरी गर्दन को छू रही थीं। उसके हाथ ने मेरे कंधे को थामा, और फिर धीरे से मेरे नितंबों की ओर बढ़ा। मेरी आंखें अपने आप बंद हो गईं। मेरा शरीर एक अजनबी संवेदना से भर गया, जैसे कोई गहरी, सोई हुई इच्छा अचानक जाग उठी हो। मुझे दोपहर वाली उस फिल्म की याद आने लगी, और मेरे भीतर एक तीव्र कुलबुलाहट होने लगी। किशोर ने मुझे बिस्तर पर लिटाया। उसकी उंगलियों का स्पर्श बिजली की तरह मेरे शरीर में दौड़ गया। वह मेरे पास आया, उसकी आंखों में एक ऐसी चमक थी जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। उसने मेरे होठों को अपने होठों से छुआ, और फिर धीरे-धीरे मेरे शरीर के हर हिस्से को अपने होंठों से महसूस करने लगा। हर स्पर्श नए रहस्य खोल रहा था।

फिर उसने मुझे पलट दिया। मेरी पीठ उसके सामने थी। मैंने बिस्तर के चादर को अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया। डर था, पर उस डर के साथ एक तीव्र इंतजार भी था। उसने सरसों के तेल की शीशी खोली। तेल की गंध कमरे में फैल गई। उसकी उंगलियां, तेल से सनी हुई, मेरे शरीर के सबसे गुप्त हिस्से के पास पहुंचीं। पहला स्पर्श एक झटके की तरह था। मैं सिहर उठा। फिर, धीरे-धीरे, उसकी उंगली अंदर की ओर बढ़ी। एक नई, अजनबी, थोड़ी दर्दभरी पर असहनीय रूप से मादक संवेदना। मेरे मुंह से एक आह निकल गई, जो मैं रोक नहीं पाया। वह उंगली अन्दर-बाहर होने लगी, और मेरा शरीर उस लय के साथ तालमेल बिठाने लगा। दर्द धीरे-धीरे एक गहरी, गर्म संतुष्टि में बदलने लगा। मैं खो सा गया था, समय और स्थान की सीमाएं धुंधली पड़ गई थीं।

फिर वह पल आया। उसने अपने शरीर को मेरे ऊपर स्थापित किया। एक जोरदार दबाव, एक तीखा दर्द जो मेरी पूरी रीढ़ में बिजली की तरह दौड़ गया। मैं चिल्लाया, लेकिन मेरी आवाज कमरे की हवा में खो सी गई। किशोर ने मेरी कमर को मजबूती से पकड़ा। “आराम से,” उसकी आवाज गहरी और सांस फूली हुई थी। दर्द के बादलों के पार, धीरे-धीरे एक नया एहसास उभरने लगा। एक भराव, एक पूर्णता, जिसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी। उसकी हर गति मेरे भीतर एक नया संगीत रच रही थी। मेरा अपना शरीर, जो अब तक केवल मेरा था, अचानक दो शरीरों की एकता में बदल गया। मैं हांफने लगा, मेरे हाथ बिस्तर के चादर को और मजबूती से पकड़ने लगे। वह तेजी से आगे बढ़ा, और मैं उसकी हर गति के साथ खुद को खोता चला गया। एक गहरा, गर्जनापूर्ण कंपन हम दोनों के शरीरों से गुजरा, और फिर एक शांति छा गई। सब कुछ थम सा गया। केवल हमारी सांसों की आवाज और दिलों की धड़कन कमरे में गूंज रही थी। उस रात के बाद, कुछ बदल गया था। मैं वह व्यक्ति नहीं रहा जो सुबह उठा था। एक नया रोहित जन्म ले चुका था, जो अपनी पहचान के एक गहरे, गुप्त कोने से अचानक बाहर आ खड़ा हुआ था। यह मेरी कहानी की सिर्फ शुरुआत थी।

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