मूर्ख बंदर और नेक सलाह

एक घने जंगल में, एक ऊँचे पहाड़ पर बंदरों का एक झुंड रहता था। सर्दियाँ अपने पूरे शबाब पर थीं और एक दिन अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। ठंड इतनी बढ़ गई कि बेचारे बंदर काँपने लगे और ठंड से बेहाल हो गए। वे किसी तरह खुद को गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे। तभी उन्हें एक पेड़ के नीचे कुछ चमकीले लाल रंग के गुंजाफल दिखाई दिए। अपनी नासमझी में, बंदरों ने उन्हें जलते हुए अंगारे समझ लिया। उन्हें लगा कि इन ‘अंगारों’ के पास बैठकर वे अपनी ठंड दूर कर सकते हैं। वे तुरंत उन गुंजाफलों के पास इकट्ठा हो गए और उन्हें तापने की कोशिश करने लगे।

पेड़ की डाल पर बैठा सूचीमुख नाम का एक समझदार पक्षी यह सब देख रहा था। बंदरों की मूर्खता देखकर उसे हँसी आ गई, लेकिन साथ ही दया भी आई। उसने विनम्रता से बंदरों को समझाया, “अरे भाइयों, ये अंगारे नहीं, बल्कि गुंजाफल हैं। इनसे तुम्हारी ठंड दूर नहीं होगी। अगर तुम सचमुच ठंड से बचना चाहते हो, तो किसी सुरक्षित गुफा या चट्टान की ओट में क्यों नहीं चले जाते? यहाँ खुले में ठंडी हवा तुम्हें और परेशान करती रहेगी।” यह सुनकर बंदरों का सरदार चिढ़ गया और घमंड से बोला, “तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे तुम ही दुनिया के सारे ज्ञान के मालिक हो!”

सूचीमुख को सरदार की बात थोड़ी बुरी लगी, लेकिन उसने अपनी समझदारी नहीं छोड़ी। उसने फिर से कहा, “मैं सर्वज्ञाता नहीं हूँ, लेकिन इतना तो जानता हूँ कि ये सिर्फ गुंजाफल हैं और इनसे आग नहीं निकलती। तुम इन्हें तापकर ठंड भगाने की जो कोशिश कर रहे हो, यह पूरी तरह मूर्खता है और इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा।” यह सुनकर झुंड के एक और गुस्से वाले बंदर ने चीखकर कहा, “ऐ पक्षी, अपनी बकवास बंद कर! हम पहले ही परेशान हैं, और तू हमें और दुखी कर रहा है!” बंदरों का व्यवहार देखकर सूचीमुख ने सोचा कि इन्हें समझाना व्यर्थ है।

इसके बावजूद, सूचीमुख ने एक आखिरी कोशिश की, “ठीक है भाई, मैं सिर्फ तुम्हारी मदद करना चाहता था क्योंकि तुम व्यर्थ परिश्रम कर रहे थे। अगर तुम्हें ठीक लगे तो करो, मुझे क्या? पर मैं अब भी कहूँगा कि अगर तुम किसी चट्टान का सहारा लेते या किसी गुफा में चले जाते तो…” लेकिन सूचीमुख अपनी बात पूरी कर पाता, इससे पहले ही बंदरों ने उस पर हमला कर दिया। उन्होंने क्रोध में आकर उसका घोंसला तोड़ डाला, उसके सारे पंख नोच डाले और उसे एक चट्टान पर बुरी तरह पटककर मार डाला। बेचारा सूचीमुख, जिसने भलाई करने की सोची थी, बेवजह मारा गया।

क्रूर बंदर फिर से उन गुंजाफलों के पास बैठकर ठंड भगाने की बेवकूफी भरी कोशिश करने लगे। लेकिन हवा और भी तेज हो गई और कुछ ही देर में बारिश के साथ बड़े-बड़े ओले भी गिरने लगे। जाड़े और ओलों की मार से कुछ बंदर वहीं मर गए, और बाकी बचे हुए बंदरों की हालत भी बेहद खराब हो गई। किसी तरह, वे एक बड़ी चट्टान के पीछे भागकर अपनी जान बचा पाए। सूचीमुख ने उन मूर्खों को अच्छी सलाह दी थी, जो उसे सुनने या समझने लायक ही नहीं थे। यह घटना सिखाती है कि कभी-कभी मूर्खों को अच्छी सलाह देना भी महंगा पड़ सकता है और उल्टा परिणाम दे सकता है।

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