मूर्ख मित्र और राजा

किसी समय एक राजा का एक बंदर से गहरा स्नेह था। राजा उस पर इतना भरोसा करता था कि उसने बंदर को अपना निजी अंगरक्षक नियुक्त कर दिया था। राजा जहाँ भी जाता, वह वफादार बंदर उसकी सहायता के लिए हमेशा उसके साथ रहता।

शुरुआत में, प्रजाजन इस विचित्र दोस्ती को देखकर हैरान होते और कभी-कभी हँसते भी थे। किंतु जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि राजा का बंदर पर अटूट विश्वास है। उन्हें यह भी ज्ञात था कि इस विषय पर कुछ भी कहना राजा की नाराजगी का कारण बन सकता है।

राजा ने बंदर को इतनी स्वतंत्रता दे रखी थी कि वह महल के भीतर भी बिना किसी रोक-टोक के आ-जा सकता था। वह राजा का अत्यंत आज्ञाकारी सेवक था, जो उसके एक संकेत पर तुरंत कार्य करने को तत्पर रहता। दिन भर राजा की सेवा में लगा रहने के कारण, राजा का स्नेह उसके प्रति और भी गहरा होता चला गया।

एक दोपहर, राजा अपने महल में विश्राम कर रहे थे। वफादार बंदर उनके निकट बैठकर उनकी सुरक्षा की निगरानी कर रहा था, ताकि निद्रा में राजा को कोई बाधा न पहुँचे। तभी बंदर ने देखा कि एक मक्खी उड़ती हुई आई और सीधे राजा की छाती पर बैठ गई। यह देखकर बंदर क्रोधित हो उठा। वह बुदबुदाया, ‘इस तुच्छ मक्खी की इतनी हिम्मत कि मेरे स्वामी के ऊपर बैठे!’ उसने मक्खी को भगाया, पर वह फिर उड़कर कभी राजा की नाक पर, तो कभी सिर पर आ बैठती।

बंदर ने पुनः उस मक्खी को उड़ाने का प्रयास किया, परंतु वह मक्खी भी बड़ी हठी थी। बार-बार उड़कर वह राजा की छाती पर लौट आती। इस जिद को देखकर बंदर को भयंकर क्रोध आ गया। उसने मन ही मन सोचा, ‘यह मक्खी अत्यंत दुष्ट और धूर्त है। यह ऐसे ही नहीं मानेगी। इसे तो कड़ा सबक सिखाना ही पड़ेगा।’

बिना सोचे-समझे, बंदर ने राजा के शयनकक्ष में रखी हुई तलवार उठाई और पूरी शक्ति से मक्खी पर वार कर दिया।

परिणामस्वरूप, मक्खी तो फुर्ती से उड़ गई, लेकिन तलवार के घातक वार से राजा की गर्दन कटकर अलग हो गई। पल भर में ही, राजा ने अपने प्राण त्याग दिए।

इस त्रासदीपूर्ण दृश्य को देखकर सभी लोग अत्यंत दुखी हो गए। भीड़ में से एक बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा, ‘इस नासमझ बंदर को देखो! यह सच है कि यह स्वामीभक्त और आज्ञाकारी था, और अपने राजा का भला ही चाहता था। परंतु अपनी अज्ञानता और मूर्खता के कारण, उसने भला करने के बजाय, उलटे अपने ही स्वामी की जान ले ली।’

तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई कि एक अज्ञानी मित्र होने से बेहतर है कि एक बुद्धिमान शत्रु हो। एक विद्वान शत्रु भी शायद आपका अहित नहीं करेगा, परंतु एक मूर्ख मित्र अपनी नासमझी से अनजाने में भी बड़ा नुकसान पहुँचा सकता है, यहाँ तक कि जान भी ले सकता है। ठीक वैसे ही, जैसे राजा के स्वामीभक्त और आज्ञाकारी मित्र बंदर ने अनचाहे में ही अपने प्रिय राजा की जान ले ली।

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