पहाड़ी का अदृश्य संगीत

सिल्विआ सुबह से ही खुशी से झूम रही थी, भले ही नियति ने उसे लगातार संघर्षों से घेरा हुआ था। उसने मोर्टिमर से शादी की थी, और कभी-कभी जीवन की भयावहता के बीच भी खुशी के पल अनायास आ जाते थे। मोर्टिमर, प्रकृति के ईश्वर, ‘पैन’ के उपासक थे, और उनका मानना था कि उनकी पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती। सिल्विआ धार्मिक स्वभाव की थी, पर मोर्टिमर की बातें उसे कभी-कभी अजीब लगती थीं। वुडलैंड्स के चारों ओर का दृश्य मनमोहक था – एस्सने का सुंदर फ़ार्महाउस, जंगल की अपनी निराली छटा, सरिता का कलकल प्रवाह, पक्षियों का कलरव, और खामोशी तोड़ती कुछ अजीब ध्वनियाँ।

एक दिन सिल्विआ ने ओक के पेड़ों में यौवन और एक सुंदर जिप्सी लड़के को देखा था। उसने मोर्टिमर से इसका जिक्र किया, पर मोर्टिमर ने कहा कि इस इलाके में कोई जिप्सी नहीं रहते। तो वह कौन था, यह रहस्य सिल्विआ को विचलित करता था। उसने सुना था कि वन देवता भयानक दिखते हैं, लेकिन सिल्विआ इन बातों पर विश्वास नहीं करती थी। वह उस जगह से दूर जाना चाहती थी जहाँ से जंगली संगीत सुनाई देता था। एक शाम, उसने पहाड़ी पर एक डार्क आकृति देखी जो ओझल हो रही थी, मानो वह किसी का शिकार न बन जाए।

सिल्विआ के मन में सहानुभूति उमड़ पड़ी। शिकारी कुत्ते शायद उसे गिराकर मार न डालें, यह सोचकर वह एक घनी झाड़ी में छिप गई और देखने लगी। तभी एक विशालकाय बारहसिंघा उसके ऊपर गिरा। दया भाव की जगह उसके चारों ओर भय का बादल छा गया। शिकारी कुत्ते नजदीक आ रहे थे, और बड़ा-सा बारहसिंघा उससे कुछ ही दूरी पर था। मोर्टिमर ने उसे आगाह किया था कि सींग वाले जानवर खतरनाक होते हैं। तभी उसे एहसास हुआ कि वह अकेली नहीं है; कुछ ही दूरी पर एक मानव चेहरा नज़र आया। वह घुटने तक घनी झाड़ियों के बीच खड़ा था।

सिल्विआ चिल्लाई, ‘इसे भगाओ!’ किन्तु उस आकृति ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बारहसिंघा सीधे उसकी छाती की सीध में दौड़ा, उसकी नथुनों में एक अजीब तरह का गंध फैल गया। उसकी आँखों में भय तैर रहा था, क्योंकि उसे अपनी मृत्यु दिखाई दे रही थी। पर तभी उसके कानों में एक लड़के की हँसी की प्रतिध्वनि लगातार सुनाई देने लगी – कहीं वही गुमनाम जिप्सी लड़के की आवाज़ तो नहीं थी? उस रहस्यमय संगीत और हँसी ने उसके भय को एक अनूठी जिज्ञासा में बदल दिया। सिल्विआ समझ गई कि जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा अज्ञात को स्वीकार करने और हर ध्वनि में छिपे रहस्य को खोजने में है, भले ही वह भयभीत करने वाली ही क्यों न हो।

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