शबीना के लिए अपना पैतृक घर हमेशा से सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक रहा था। तीस साल की यह सुंदर युवती, जिसकी शादी को अभी एक साल ही हुआ था, बैंगलोर में अपने इंजीनियर पति के साथ रहती थी। नवंबर की गुलाबी ठंड में, अपने बड़े अंकल की छोटी बेटी की निकाह के अवसर पर वह अपने मायके लौटी थी। घर में उत्सव का माहौल था – रिश्तेदारों की आवाजाही, शादी की तैयारियों की हलचल और रंग-बिरंगे कपड़ों की खुशबू हर तरफ फैली हुई थी। शबीना की माँ, शबाना, जिनकी शक्ल-सूरत और आवाज़ में शबीना बिल्कुल झलकती थी, पूरी व्यवस्था संभाल रही थीं क्योंकि दुल्हन की माँ का इंतकाल हो चुका था।
शाम के आठ बज चुके थे जब बाज़ार और मैरिज हॉल की थकावट भरी दौड़ के बाद सभी लौटे। शबीना के पिता और भाई इरफान घर चले गए, जबकि शबीना और उसकी माँ अभी भी मैरिज हॉल में कपड़े और गहनों का निरीक्षण कर रही थीं। पिता का फोन आया – आवाज़ में चिंता और थकान साफ झलक रही थी। “अरे, कल भी काम है! अब कितनी देर करोगी? रात हो गई, बहुत ठंड का भी वक्त है!” नवंबर की हवा में सर्दी की झलक महसूस हो रही थी। शबाना ने शबीना की तरफ देखा और गेस्ट रूम की चाबी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “बेटा, तुम चली जाओ और ये लो गेस्ट रूम की चाबी! तुम वही सो जाना!”
शबीना ने हाँ कहा और मैरिज हॉल से निकल गई। उसकी माँ ने अपने पति को व्हाट्सएप पर संदेश भेजा: “आप लोग सो जाइए। मैं कुछ काम निबटाकर आती हूँ और आकर गेस्ट रूम में सो जाऊँगी!” जवाब में एक साधारण “ओके!” आया। शबाना अब मुक्त थीं – शबीना के बड़े अंकल के साथ पूरी रात बिताने के लिए स्वतंत्र। इधर, शबीना घर पहुँचकर सीधे छत पर गई और अपने पति से लंबी बातचीत की। बातचीत समाप्त करके वह गेस्ट रूम में आई और अपनी माँ का गाउन पहनकर बिस्तर पर लेट गई। कमरे में अंधेरा था, केवल बाहर से आती हल्की रोशनी दीवारों पर नाच रही थी।
रात के लगभग ग्यारह बजे होंगे जब हॉल की लाइट जली। शबीना उठना चाहती थी पर थकान ने उसे बिस्तर से चिपका दिया। कुछ ही क्षणों में कमरे का दरवाज़ा खुला – शबीना ने कुंडी नहीं लगाई थी। हॉल के बल्ब की पीली रोशनी में उसने अंदर आने वाले व्यक्ति की परिचित कद-काठी पहचान ली – उसके पिता थे। वह कमरे में आते ही बोल पड़े, “मोहतरमा, इस शादी के चक्कर में तो आपने मेरा ख्याल ही रखना छोड़ दिया!” शबीना के कानों में इयरफोन लगे होने के कारण उसने कुछ नहीं सुना। उसने देखा कि उसके पिता अपने कपड़े उतार रहे हैं। एक अजीब सी घबराहट ने उसे जकड़ लिया – कहीं वह कमरे की लाइट न जला दें।
वह कुछ सोच पाती या बोल पाती, उससे पहले ही उसके पिता बिस्तर पर आ चुके थे। शबीना का शरीर अपनी माँ की तरह ही भरा-भरा और आकर्षक था, जिससे अंधेरे में किसी को भी भ्रम हो सकता था। पिता बिस्तर पर आते ही शबीना के स्तनों को दबाने लगे। शबीना की साँसें तेज़ हो गईं, हृदय की धड़कनें बढ़ गईं। उसके पिता ने पूरी तीव्रता के साथ उसके साथ मस्ती शुरू कर दी थी। इसी बीच, हॉल में फिर से हलचल हुई। शबीना और उसके पिता दोनों ने बाहर की ओर देखा – शायद शबीना का भाई असलम था। इसलिए पिता अब खामोशी से शबीना को अपनी पत्नी शबाना समझकर चूमने लगे।
शबीना कुछ बोल नहीं पा रही थी। उसे इन सबकी उम्मीद नहीं थी। वह धीरे-धीरे शबीना के कपड़े उतारने लगे और फिर उसे पूरी तरह नंगा करके उसके ऊपर आ गए। “क्या ऊपर वाले ने हुस्न दिया है, मोहतरमा!” पिता हल्की आवाज़ में बोले। वह अब शबीना के नंगे शरीर के ठीक ऊपर और दोनों जांघों के बीच आ चुके थे। वह शबीना को चूमते जा रहे थे और स्तनों को मसलते जा रहे थे। शबीना के मुँह से भी अब आह-आह की आवाज़ आने लगी थी – एक अजीब सी मिश्रित भावना उसे घेर रही थी।
पिता पूरे जोश में थे। वह शबीना को भूखे शेर की तरह नोच रहे थे। धीरे-धीरे शबीना सब भूलकर अपने पिता की बाहों में सिमटती चली गई। दोनों ने एक-दूसरे का पूरा साथ दिया। कमरे में बिस्तर पर काफ़ी देर तक दोनों एक-दूसरे का साथ देते रहे और फिर शबीना के अंदर ही उसके पिता झड़ गए। शबीना ने अपनी शादी के एक साल में पहली बार ऐसी संभोग का आनंद लिया था। कुछ देर बाद पिता जल्दी से उठकर कपड़े पहनकर कमरे से निकल गए। शबीना अभी इस खुशनुमा माहौल को महसूस ही कर रही थी कि उसे अहसास हुआ कि पिता का फोन बिस्तर पर ही छूट गया है।
तभी कमरे में किसी और के आने की आहट हुई। वह समझी कि उसके पिता अपना फोन लेने आए होंगे, पर यह तो उसका भाई असलम था। अब यह यहाँ किसलिए? असलम भी कमरे में आते ही अपने कपड़े उतारने लगा, “अम्मी, आपने आज तो अब्बू को बहुत वक्त दिया है!” अम्मी के संभोग की यह बात सुनकर शबीना स्तब्ध हो गई। पर असलम ने बिना समय गँवाए तुरंत शबीना के पास आकर मानो सालों से भूखा हो, उस पर टूट पड़ा। शबीना उसे रोकती-मनाती, पर फिर सोचा कि अगर यह बात अभी इस वक्त इस कमरे से बाहर गई, तो सारे भेद खुल जाएँगे।
निकाह के घर में बहुत बवाल मच जाएगा और उसकी निकाह भी टूट सकती है। यह सोचकर वह चुप रह गई। इसी चुप्पी का फायदा असलम ने उठाया। वह शबीना को अपनी माँ समझकर बेतहाशा प्यार करने लगा। वह शबीना के एक-दो कपड़े, जो उसने बाद में पहने थे, उन्हें भी उतार फेंका और फिर मज़े करने लगा। “अम्मी, आज आप मेरा लिंग चूसोगी? पिछली बार भी चूसी थी!” अब शबीना समझ गई थी कि उसके घर का क्या माजरा है। इसी बीच, असलम अपना लिंग शबीना के मुँह के पास रखकर दबाव डाल रहा था।
शबीना के पास अब कोई उपाय नहीं था, वह लिंग चूसने लगी। असलम आनंद में आवाज़ निकालने लगा। कुछ ही देर में असलम ने अपने पूरे जोश में आकर अपना वीर्य शबीना के चेहरे पर निकाल दिया। परिवार में ऐसे-ऐसे काम होते हैं! शबीना के आगे न आसमान था, न ज़मीन। असलम ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, “ओह, आज अब्बू ने ही ज़्यादा टाइम लिया, अम्मी! देर तो एक बजने को है!” असलम अब जल्दी से दूसरी बार शबीना के साथ संभोग करने लगा। वह शबीना के बड़े और कड़े स्तनों को मसलने और चूसने लगा।
कुछ ही देर में असलम ने शबीना के साथ संभोग शुरू कर दिया। असलम भाई का लिंग ताकतवर था। शबीना अपनी योनि में उसकी उपस्थिति साफ महसूस कर रही थी। वह शबीना की दोनों जांघों को फैलाकर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मार रहा था। शबीना भी अब मस्त हो चुकी थी। वह भी कमर उठा-उठाकर असलम के लिंग का आनंद ले रही थी। दोनों बीस मिनट तक तेज़ धक्कों का आनंद लेने के बाद शांत हो चुके थे। शबीना भी आज दो बार चरम सुख प्राप्त कर चुकी थी। असलम अपना काम निबटाकर वापस अपने कमरे में चला गया। शबीना भी शांति से बिस्तर पर लेटी रही। और अपने पिता के छूटे हुए फोन के संदेश देखने लगी, जिसमें उसकी माँ का संदेश था: “मैं गेस्ट रूम में सो जाऊँगी कुछ देर में, और शबीना यहाँ का काम कर देगी!”
अब शबीना को समझ आ गया था कि यह सब गलतफहमी में हुआ है, पर जो भी हो रहा था, वह सबकी सहमति से हो रहा था। शबीना के मन में कई सवाल थे, पर अब उसे गहरी नींद आ रही थी। उसकी दिनभर की थकान दूर हो चुकी थी। फिर भी, वह अपने पिता का फोन हॉल के सोफे पर रख आई और वापस गेस्ट रूम में आकर सो गई। उस रात के बाद, शबीना के लिए परिवार की परिभाषा हमेशा के लिए बदल चुकी थी – पर्दों के पीछे छिपी वास्तविकताएँ अब उसकी अपनी कहानी का हिस्सा बन गई थीं।