शेर और चूहा

एक घने जंगल में एक बहुत शक्तिशाली और घमंडी शेर रहता था। वह अपनी अद्भुत ताकत पर इतराता था और जंगल के बाकी छोटे-बड़े जीवों को महत्वहीन समझता था। उसी जंगल में एक फुर्तीला और समझदार चूहा भी रहता था। अक्सर जब शेर चूहे को देखता, तो उसका उपहास करता, “अरे छोटे प्राणी, तुम भला क्या कर सकते हो?” चूहा हमेशा उसकी बातों को सुनकर चुपचाप मुस्कुरा देता और अपने रास्ते चला जाता।

एक दिन की बात है, शेर जंगल में शिकार की तलाश में घूम रहा था। अनजाने में, वह एक चालाक शिकारी द्वारा बिछाए गए मजबूत जाल में फँस गया। शेर ने जाल से बाहर निकलने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी, वह दहाड़ा और अपने पंजों से वार किए, लेकिन जाल इतना मजबूत था कि वह जरा भी नहीं हिला। उसकी दर्द भरी दहाड़ें पूरे जंगल में गूँज उठीं, मगर कोई भी जानवर उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया, क्योंकि सभी उससे बहुत डरते थे।

चूहे ने शेर की करुण दहाड़ सुनी और तुरंत समझ गया कि शेर किसी बड़ी मुसीबत में है। वह तेजी से दौड़ता हुआ शेर के पास पहुँचा। शेर ने चूहे को देखा और झुंझलाकर बोला, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम जैसे छोटे जीव मेरी क्या सहायता कर सकते हो?” चूहे ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “महाराज, कभी-कभी छोटे से छोटा प्राणी भी बड़े काम आ सकता है। कृपा करके मुझे एक अवसर दें।” और बिना समय गँवाए, चूहे ने अपने तेज दाँतों से जाल के रेशों को कुतरना शुरू कर दिया।

कुछ ही पलों में, चूहे ने जाल के कई मजबूत धागे काट दिए और शेर के लिए बाहर निकलने का रास्ता बना दिया। शेर खुशी-खुशी जाल से बाहर निकल आया और आजाद हो गया। शेर ने चूहे का हृदय से धन्यवाद किया और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे समझ आ गया था कि किसी की भी उपयोगिता उसकी शारीरिक शक्ति या आकार से नहीं मापी जाती, बल्कि हर जीव का अपना विशेष महत्व होता है। उस दिन से, शेर और चूहा सच्चे मित्र बन गए।

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